कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ द्वारा संचालित निकरा परियोजना जलवायु समुत्थानुशील कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार के अंतर्गत अंगीकृत ग्राम कोड़िया ब्लॉक जतारा जिला टीकमगढ़ में मिट्टी परिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भूमि में भौतिक एवं रासायनिक संरचना तथा उपलब्ध पोषक तत्वों की स्थिति को ज्ञात करने के लिये मृदा का विश्लेषण करना ही मृदा परीक्षण कहलाता है। प्रत्येक पौधे की वृद्धि एवं विकास के लिये 17 पोषक तत्व की आवश्यकता होती है इनमे से किसी भी पोषक तत्व की कमी से पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
मिट्टी परीक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि कृषक सही मात्रा में फसल के अनुसार पोषक तत्व डाले। खाद एवं उर्वरक के माध्यम से मिट्टी की आवश्यकता के अनुसार सही प्रकार की रासायनिक एवं जैविक खाद का उपयोग होना चाहिए। मिट्टी के रासायनिक परिक्षण से मिट्टी उपयुक्तता के आधार पर फसल की अधिक पैदावार के लिये बिल्कुल सही अनुमान लगाया जा सकता है। सामान्य मिट्टी की जांच मुख्य बिन्दुओं के लिये की जाती है जैसे- जीवांश या कार्बनिक पदार्थ, मिट्टी में विद्यमान पोषक तत्वों की मात्रा, पी.एच. मूल्य या अम्लता/क्षारीयता, घुलनशील लवण या विद्युत चालकता, उपज बढ़ाने के लिये उर्वरक की कितनी मात्रा देना आवश्यक है।
खेत से मिट्टी का नमूना लेने की विधि कुछ इस प्रकार है - मिट्टी का नमूना एकत्र करने के लिये खेत में कम से कम 16-20 जगहों का चुनाव किया जाये और इन स्थानों की ऊपरी सतह का कूड़ा-कचरा, खरपतवार आदि खुरचकर साफ कर लेना चाहिये, फावड़ा या खुरपी से नमूना एकत्रित करना है तो मृदा में व्ही (ट) के आकार का लगभग 20 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा खोदते है। इस गड्ढे की दीवार से मृदा की ऊपरी सतह से डेढ़ से दो सेमी. मोटी परत काटते हैं और इस प्रकार कटी हुई मृदा को एकत्रित कर लेते है। इन सभी नमूनों को एक साफ कपड़े या तसले या ट्रे में रखकर भली प्रकार मिला लेते हैं, इन सभी नमूनों को हाथ या खुरपी की सहायता से अच्छी तरह मिला लेते हैं। मिट्टी मिलाते समय कंकड़-पत्थर आदि के टुकड़े, पौधों की जड़े और अवशेष आदि निकाल कर अलग कर देते हैं, फिर नमूने का एक ढेर बना लेते है और इन नमूनों को चार भागों में बांट लेते है इनमें से आमने-सामने के दो भाग हटा देते हैं। शेष दो भागों की मिट्टी का पुनः ढेर बनाकर फिर से चार भागों में विभाजित कर लेते है और पहले की भांति आमने सामने के दो भागों को पुनः मिलाकर ढेर बना लेंते है, यह क्रिया तब तक इसी प्रकार दोहराते रहें, जब तक लगभग मिट्टी की मात्र आधा किलोग्राम मिट्टी शेष रह जाये, इस नमूने को कपड़े की थैली में भरकर एक नमूना पत्रक (जिसमें कृषक का नाम, पता, खेत का नाम या नम्बर, जी.पी.एस., बोई जाने वाली फसल, नमूने लेने का दिनांक, खेत का क्षेत्रफल आदि लिखा हो) थैली के अंदर डालते हैं।मिट्टी का नमूना कभी भी लिया जा सकता है खाली खेत खरीफ की फसलों के लिए अप्रेल से जून तक या रबी की फसलों के लिए अक्टूबर माह में नमूना लेने का उपयुक्त समय रहता है। मिट्टी का नमूना लेने में इस प्रकार की सावधानियां जरुर रखे जैसे कि- खाद के ढेर, खेत की मेढ़ या सिंचाई की नाली के पास नमूना न लें, खेत में लगे किसी पेड़ के जड़ वाले क्षेत्र से नमूना न लें, गीली मिट्टी का नमूना न लें, नमूनों को सुखाने के लिये उर्वरकों या अन्य रासायनिक पदार्थों वाले खाली बोरों का प्रयोग न किया जाये, सूक्ष्म तत्वों के परीक्षण हेतु नमूना लेते समय स्टेनलेस स्टील या लकड़ी से बने औजारों से मिट्टी का नमूना एकत्र करें।
मिट्टी परीक्षण करने से मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा मालूम हो जाती है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति के आधार पर उर्वरक की संतुलित मात्रा के उपयोग करने से आसानी रहती है। इस प्रकार उर्वरकों के संतुलित उपयोग से उपज अधिक प्राप्त होती है। खेत की उपजाऊ शक्ति लम्बे समय तक बनी रहती है। मिट्टी परीक्षण जैविक खेती का आधार है। कौन सा उर्वरक एवं कितनी मात्रा में डालना है, यह पहले मालूम हो जाता है।
कार्यक्रम के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र के डॉ. बी.एस. किरार प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. आर. के. प्रजापति, डॉ. यू.एस. धाकड़ एवं जयपाल छिगारहा सहित 35 कृषक उपस्थित रहे। मिट्टी परीक्षण अभियान केंद्र द्वारा पूरे जून माह भर किसनों में जागरूकता लेन के लिए चलाया जा रहा है, जिससे मिट्टी के स्वास्थ्य को सही रखने में कृषकों में जागरूकता ए और अधिक मात्र में खाद/उर्वरक अनावश्यक रूप से उपयोग करने से एक तो खेती की लगत बढाती है और दूसरी खेत की मिट्टी भी ख़राब होती है जिससे पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ता है।