जबलपुर l फसलों का बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा किसानों को उर्वरकों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने की सलाह दी गई है। उर्वरकों का दक्षतापूर्वक उपयोग करने से मृदा स्वास्थ्य में सुधार के साथ पर्यावरण प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है। भारतीय परिस्थितयों में फसलों के लिए आवश्यक फास्फोरस, नाइट्रोजन एवं पोटाश पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता क्रमशः 25, 50 एवं 50 से 60 प्रतिशत से भी कम है। इन पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता को बढ़ाने के लिए किसानों को सही स्त्रोतों से प्राप्त उर्वरकों की उचित मात्रा का उपयोग सही समय एवं सही स्थान पर सही संयोजन में करना अति आवश्यक है। उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने बताया कि कृषि के लिए उर्वरक एक मूल्यवान संसाधन है। मृदा परीक्षण एवं मृदा स्वास्थ्य कार्ड द्वारा मृदा के लिए उपयुक्त उर्वरक के सर्वोत्तम स्रोत की जानकारी प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि फसल शुरूआती चरण में पोषक तत्वों को मंद गति से एवं विकास के चरण में सर्वाधिक तीव्र गति से ग्रहण करती है। इसीलिए किसानों को नाइट्रोजन का  फसल की वृद्धि के अनुसार विभाजित कर उपयोग करना चाहिए। जबकि फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा का उपयोग बोनी के समय करना चाहिए। श्री आम्रवंशी ने बताया कि फसल में नाइट्रोजन धीमे रिलीज एवं नियंत्रित रिलीज नाइट्रोजन उर्वरक का चयन करना चाहिए। फारफोरस को बीज के नीचे 5 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर डालना चाहिए। पानी में घुलनशील उर्वरकों का उपयोग सिंचाई द्वारा फर्टिगेशन के माध्यम से करना चाहिए। उन्होनें बताया कि फास्फोरस और जिंक का परस्पर प्रभाव नकारात्मक होने के कारण दोनों उर्वरकों के उपयोग के बीच आवश्यक समय अंतराल होना अति आवश्यक है। श्री आम्रवंशी के मुताबिक किसानों को फसल प्रणाली के आधार पर पोषक तत्वों के अनुपात का भी ध्यानपूर्वक पालन करना चाहिए। अनाज वाली फसलों में 4:21, दलहनी फसलों में 1:22 एवं जड़ वाली फसलों में 1:2:1 के अनुपात में एन.पी.के. उर्वरक का उपयोग करना सर्वोत्तम है। श्री आम्रवंशी ने बताया कि उर्वरकों का संयोजन भी पोषकतत्वों के आधार पर करना चाहिए। किसानों द्वारा डी.ए.पी. का उपयोग करने के स्थान पर एस.एस.पी. का उपयोग करने से फसलों में सल्फर एवं कैल्शियम की आवश्यकता की भी पूर्ति की जा सकती है। डी.ए.पी. की अपेक्षा एन.पी.के. का उपयोग करने से फसलों को पोटाश की मात्रा भी प्राप्त होती है। इन प्रबंधन प्रणालियों के उपयोग से न सिर्फ मृदा में सकारात्मक प्रभाव बना रहता है अपितु यह स्थाई कृषि की ओर कदम बढ़ाने में भी कारगर साबित हो सकता है।