दमोहl कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर द्वारा दिये गये निर्देशों के तहत नरवाई प्रबंधन हेतु प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन प्रत्येक विकासखण्डों में किया जा रहा हैं। 06 मई से यह शिविर दमोह विकासखण्ड से प्रारंभ किये गये थे। आज पांचवे शिविर का आयोजन पटेरा विकासखण्ड के ग्राम देवरी रतन में किया गयाजिसमें कृषकों को नरवाई प्रबंधन प्रशिक्षण एवं मशीनों का प्रदर्शन किया गया। शिविर मे कृषकों में भारी उत्साह देखा गया।

            इस सबंध में उप संचालक कृषि श्री सिंह ने बताया कृषि विभाग के अधिकारियोंकृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि अभियांत्रिकी विभाग के द्वारा नरवाई जलाने की प्रथा को हतोत्साहित करने के लिये लगातार प्रयास किये जा रहे है। उन्होने बताया कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट श्री कोचर द्वारा जारी दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 के अंतर्गत जारी प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किया है। उन्होंने कहा यदि कृषक बंधु नरवाई या फसल अवशेष जलाते है तो निर्देशों का उल्लंघन किये जाने पर व्यक्ति/निकाय को नोटिफिकेशन प्रावधानानुसार पर्यावरण क्षति पूर्ति राशि देय होगी। कृषक जिनके पास 2 एकड़ से कम जमीन है उन्हें 2500 रूपये प्रति घटना पर्यावरण क्षति पूर्ति अर्थदण्ड देय होगा। कृषक जिनके पास 02 एकड़ से अधिक एवं 05 एकड़ से कम जमीन है उन्हें 5000 रूपये प्रति घटना पर्यावरण क्षति पूर्ति अर्थदण्ड देय होगा। कृषक जिनके पास 05 एकड़ से अधिक जमीन है उन्हें 15000 रूपये प्रति घटना पर्यावरण क्षति पूर्ति अर्थदण्ड देय होगा।

            परियोजना संचालक आत्मा मुकेश कुमार प्रजापति ने कहा कृषक बंधु  प्राकृतिक खेती करें जिसमें एक देशी गाय के गोबर एवं गौ मूत्र का उपयोग करके 30 एकड़ की खेती जीवामृत एवं घन जीवामृत बना कर उपयोग कर शून्य बजट में प्राकृतिक खेती कर सकते हैं  उन्होंने वेस्ट डिकम्पोजर का उपयोग कर नरवाई प्रबंधन के बारे में विस्तृत रूप से बताया।

            कृषि वैज्ञानिक डॉबी.एल.साहू ने कहा कृषक बंधु फसल अवशेष/नरवाई को खेत में जला देते हैं जिससे मृदा में उपस्थित लाभदायक सूक्ष्म पोषक तत्व एवं जैविक कार्बन जलकर नष्ट हो जाते हैजिससे मृदा सख्त एवं कठोर तथा बंजर हो जाती है तथा फसलों में विभिन्न प्रकार के रोगकीट एवं बीमारियो एवं खरपतवारों की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती हैजिससे फसलोत्पादन में कमी एवं लगातार जल स्तर मे गिरावट देखी जा रही है। उन्होंने कहा कृषक बंधु नरवाई में आग  लगाये उसके स्थान पर वैकल्पिक विधियां जैसेबंडल बनानास्ट्रारीपर से भूसा बनानाजैविक खाद बनाना एवं फसल अवशेष का उपयोग अच्छादन के रूप में किया जा सकता है।            

            सहायक संचालक कृषि जे.एलप्रजापति ने कहा समस्याओं से निजात पाने के लिये ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई किसानों के लिये एक वरदान के रुप में साबित हो सकती है। मई-जून के माह में मिट्टी पलटने बाले हल जैसे मोल्ड़ बोर्ड प्लाऊटर्न रेस्ट प्लाऊ या रिर्वस विल मोल्ड़ बोर्ड प्लाऊ के द्वारा तीन वर्ष मे कम से कम एक बार 20 से.मीसे अधिक गहरी ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई अवश्य करनी चाहिए। गहरी जुताई से भूमि की ऊपरी कठोर परत टूट जाती है जिससे मृदा में वर्षा जल धीरे-धीरे रिस-रिस कर जमीन के अंदर जाता है तथा वर्षा जल का रुकाव जमीन में अत्यधिक होने के कारण मृदा में जल धारण क्षमता एवं जल स्तर में वृद्धि हो जाती है। फसल अवशेष के मृदा में दब जाने से विघटित होकर जैविक खाद तथा काले रंग का ह्यूमस बनाते हैं जो मृदा की भौतिक संरचना में सुधार करता हैवह मृदा में सूक्ष्म जीवों एवं पौधों के लिए अनुकूल परिस्थिति पैदा करता है एवं कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि तथा जैविक खाद तैयार हो जाती है।

            कार्यक्रम में कृषि अभियांत्रिकी शहला नाज कुरैशी ने -कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल के माध्यम से अनुदान पर कृषि यंत्र खरीदने की जानकारी दी तथा नरवाई प्रबंधन के लिये विभिन्न कृषि यंत्रों जैसे प्लाहेप्पी  सीडरस्ट्रारीपरश्रेडरबेलररीपर कम बाईंडरसुपर सीडर एवं जीरो टिलेज सीड ड्रिल पद्धति का उपयोग कर नरवाई को बिना जलाये प्रबंधन किया जा सकता है। उन्होंने कस्टम हायरिंग योजना के बारे में जानकारी दी।

            कृषक धमेन्द्र सिंह परिहार ने गेंहू की फसल कटने के बाद नरवाई में बिना आग लगाये खड़ी नरवाई में ही बिना किसी जुताई के सीधे मूंग की बुबाई सुपर सीडर से कराई गईजिनके खेत का निरीक्षण किया गया। फसल की स्थिति सामान्य है और नरवाई विघटित होकर जैविक खाद का रूप ले चुकी है तथा मल्चिंग का भी कार्य कर रहे है। कृषक द्वारा बताया गया कि सुपर सीडर से बोनी करने से पानी की भी बचत होती है तथा खाद भी कम डालना पड़ता है एवं जुताई भी खेत की नहीं करनी पड़ती है जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है तथा उत्पादन भी अच्छा होता है। कृषक द्वारा सुपर सीडर कृषि अभियांत्रिकी से अनुदान प्राप्त किया है। मशीन की कुल लागत 2 लाख 80 हजार है तथा इन्हें 1 लाख 5 हजार का अनुदान कृषि अभियांत्रिकी द्वारा दिया गया है।

            कृषकों द्वारा नरवाई  जलाने की शपथ ली गई एवं प्रशिक्षण शिविर में नरवाई प्रबंधन हेतु अत्याधुनिक मशीनों (चौपररेकर एवं बेलरके द्वारा नरवाई के बंडल बनाने का प्रदर्शन किया गया।

            कार्यक्रम में मुख्य रूप से बी.टी.एम. (आत्मारशैलेन्द्र पौराणिककृषि अभियांत्रिकी संजय उपाध्यायसमस्त कृषि विस्तार अधिकारी पटेरा के साथ-साथ कृषकों की उपस्थिति रहीं।