संस्कृत हमारी भावनाओं को विकसित करती है - संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत

नागपुर l आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं का मूल है और इसे संचार का माध्यम बनाने की आवश्यकता है। संस्कृत को घर-घर तक पहुंचाने की आवश्यकता है। उन्होंने संस्कृत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार की वकालत की और कहा कि यह ऐसी है जो ‘‘हमारी भावनाओं (भाव) को विकसित’’ करती है। उन्होंने कहा कि सभी को इस प्राचीन को जानना चाहिए।भागवत ने कहा कि संस्कृत भारत की सभी भाषाओं की जननी है और इसे आगे बढ़ाने के लिए लोगों को अपने दैनिक जीवन में इसका इस्तेमाल करना चाहिए। आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘हमें अपने दैनिक संवाद में इस को बोलना सीखना होगा। यह दैनिक संवाद की बननी चाहिए। मैंने यह सीखी है, लेकिन मैं इसे धाराप्रवाह नहीं बोल पाता। संस्कृत को हर घर तक पहुंचाने की जरूरत है और इस में संवाद जरूरी है।’’आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संस्कृत को जानना, देश को समझने के समान है। भागवत ने विश्वविद्यालय में अभिनव भारती अंतरराष्ट्रीय अकादमिक भवन का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि पश्चिमी समाज जहां ‘‘वैश्विक बाजार’’ की बात करते हैं, वहीं ‘‘हम वैश्विक परिवार’’ की बात करते हैं, जिसकी विशेषता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक परिवार है) की अवधारणा है।नागपुर में कवि कुलगुरु कालीदास संस्कृत विश्वविद्यालय में एक भवन के उद्घाटन समारोह में भागवत ने कहा कि संस्कृत को समझने और उसमें संवाद करने की क्षमता रखने में अंतर होता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय को सरकारी संरक्षण मिलेगा, लेकिन जनता का संरक्षण मिलना भी जरूरी है।