अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस पर

दिव्य चिंतन                                                   - जीवन में इस पल तक समाज कल्याण, राष्ट्र के उत्थान के लिए मुझे शस्त्र उठाने की आवश्यक्ता नहीं पड़ी ।  मेरे पास जो शस्त्र है ।  वह रक्तपात नहीं करता, उससे लिखे शब्दों से मैंने सत्ता के अभिमान, घोटालेबाज़ के घोटाले, दुराचारी के दुराचार, भ्रष्टाचारी के भ्रष्टाचार, बेइमानों के दंभ को उजागर किया  है ।  वह है मेरी कलम ! जो मुझे विरासत में मिली , वही मेरा ब्रह्मास्त्र है ।

     हर गरीब, बेबस, शोषित, पीड़ित के बहते  हुए आंसुओं को पोंछती रही  मेरी कलम ! भ्रष्टाचारियों के अंधेरे में छिपे चेहरों को उजागर करती रही मेरी कलम ! घोर अंधेरे में आशा की किरण बनी मेरी कलम ! सच्चे को सच्चा , अच्छे को अच्छा, बेईमान को बेईमान, भ्रष्टाचारी को भ्रष्ट लिखने का साहस देती रही मेरी कलम !

      मेरी कलम " मूक "  जनता की आवाज़ बनी। बेजुबान की ज़ुबान बनकर उनके हक के लिए लड़ी। छोटी से छोटी कमज़ोरियों को, बड़ी सी बड़ी खूबियों को उजागर किया मेरी कलम ने। ज़िंदगी के हर मोड़ पर मेरा साथ दिया मेरी कलम ने !
    
      मेरी कलम ने शब्दों को पाला है । आंधियों में, हर पल अपना रक्त पिलाकर । मेरी कलम  रख सकती है , बेईमानों के  की तख्तो ताज नींव हिलाकर । क्योंकि मैं कलम से  लिखता हूं... स्याही में खून मिलाकर ।

     मेरी कलम  से अब मैं अपने अंतर्मन के द्वंद । वीरों का इतिहास । बारूदों की गंध । भ्रष्टाचारियों के भ्रष्टाचार।
 षड्यंत्रकारियों के षड्यंत्र लिखूंगा।
   
     मैं वाणी का वरद पुत्र, मूक माटी  का मुखर पुत्र हूं ! शब्द दूत हूं!दिव्य घोष हूं! दिव्य चिंतन हूं! मृत्युंजय हूं !

    मेरी कलम  के शब्द-शब्द क्रांति चेतना घोल रहे हैं । ये जो मेरे हाव-भाव में,आक्रोश बन डोल रहे हैं l जब मैं मूक होकर माटी में मिल जाऊंगा। तब मेरे द्वारा लिखे गए हर शब्द गरीब,बेबस, शोषित, पीड़ित को याद आएंगे। बस मरने पर  चिता में, मेरी कलम  मेरे सिरहाने रखना और कफन पर  हिंदुस्तान लिख देना 🙏🏼

लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )
स्वरदूत क्रमांक -९५८४८१५७८१