दिव्य सुहागन उत्सव - विवाह संस्कार है ...करार नहीं
दिव्य चिंतन (हरीश मिश्र)
दिव्य सुहागन उत्सव पर कुछ लोग पत्नियों का, उपहास बना रहे हैं । हिन्दू धर्म में यह सबसे पवित्र उत्सव होता है । उपहास बनाने से पहले सौ बार अवश्य सोचना । क्या बिना स्वार्थ के किसी की एक दिन भी सेवा कर सकते हो ? अरे पत्नी तो जीवन भर साथ देती है । चाहे काल ही सामने क्यों न हो ।
कई पंथों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है । जिसे जब चाहा तोड़ दिया । किंतु हिन्दू धर्म में विवाह संस्कार है। इस संस्कार में वर और वधू सहित सभी पक्षों की सहमति लिए जाने की प्रथा है। हिन्दू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध होता है और इस संबंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। किसी ने क्या खूब लिखा है-
*मेरा साज-श्रृंगार सब साजन से है ।*
*बिखरा जीवन में प्यार साजन से है ।*
*घर और परिवार सब साजन से है ।*
*सातों जन्म के साथ का वर दे जाना ।*
*ऐ चांद तुम जल्दी से आ जाना।*
हम पुरुषों की सुख, समृद्धि,लंबी आयु ,अच्छे स्वास्थ्य के लिए इतनी कठिन तपस्या करने वाली समस्त मातृ शक्तियों को
दिव्य सुहागन
उत्सव की अनंत शुभकामनाऐं । सभी मां बहनें सदा-सुहागन रहें ।
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