अभी नहीं तो कभी नहीं : पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की जरूरत

दिव्य चिंतन
शौर्य की पुकार -
अब मौन नहीं, प्रतिकार चाहिए
हरीश मिश्र
देश वैशाख में बेहद तप रहा है। तप रहा है सूरज की तीखी किरणों से और बंगाल से कश्मीर तक दहशतगर्दों के नापाक इरादों से। अभी मानसून दूर है, लेकिन आम आदमी उमस से बेचैन है। बंगाल के मुर्शिदाबाद, नॉर्थ 24 परगना, हुगली, मालदा में दहशतगर्दी की बूंदाबांदी हुई और मंगलवार को पहलगाम में आतंकवाद के बादल फट पड़े।
ठंडी वादियों में रक्त के झरने बहने लगे। मंगल को अमंगलकारी आतंक की बिजली आसमान में चमक रही थी। देश का आम आदमी क्रोधित है। गर्मी की तपन में, ठंडी वादी में आतंकवादियों ने गर्म लहू से फाग खेलकर सिद्ध किया है कि बर्फ के अंदर भी आग होती है। मजहब की आड़ में कुछ लोग हैवान बन गए हैं।
सरकार को समझना चाहिए कि क़ुरआन की आयतें और गीता के श्लोकों से दहशतगर्दी नहीं रुकेगी; दहशतगर्दी, उद्दंड को दंड देने से ही रुकेगी।
निर्दोषों के खून से रंगे हैं नापाक हाथ। बस, ईमान वाले इंसान के अंदर का हैवान जाग गया है—मजहब के मुखौटे में, खून से खेल रहा है शैतान। बर्बरता हावी हो चुकी है। मजहब के नाम पर पांवों में पड़ी बिवाइयों और पिंडलियों की सड़न दिखाई दे रही है। अविश्वास का अंधेरा और दिशाहीनता का बोध स्पष्ट है।
1948 में शांतिदूत नेहरू की भूल और 1999 में अटल जी की लाहौर बस यात्रा की भूल को 2025 में सुधारा जा सकता है। स्मरण कीजिए कंधार कांड को—जब पिशाचों के एक झुंड ने निर्दोषों को बंदी बनाकर अपने ही जैसे रक्तपिपासु साथियों की रिहाई करवा ली थी। विडंबना देखिए, यह सारा अधर्म भी धर्म के नाम पर रचा गया था! मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण याद होगा—कैसे सरकार की नाक कटी थी।
बचपन में हमारा एक मित्र था, जिसे पिटने में बड़ा आनंद आता था। जब भी उसका पिटने का मन होता, वह राह चलते लोगों की टोपी उछाल देता, और फिर इत्मीनान से पिटता। पाकिस्तान की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है।
पाकिस्तान ने टोपी उछाली है, तो भारत को समय का लाभ उठाना चाहिए और उसके ऊंचे पजामे का नाड़ा खोलकर भूगोल बदल देना चाहिए। यह अवसर पाकिस्तान ने दिया है—उसकी मंशा को पूरा करना चाहिए। पाकिस्तान ने फिर सीमा रेखा तोड़ी है; उसे उसका दंड मिलना ही चाहिए।
हमारी सेना ने उरी का बदला लिया था—अब एक भी सैन्य शिविर नहीं बचना चाहिए जो घुसपैठियों को रसद पहुंचाते हैं। जिनके इरादे नापाक हों, उनके लिए युद्ध ही आवश्यक है। सीमा के उस पार जाकर सबक सिखाना जरूरी है।
"विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।" प्रभु श्रीराम समुद्र के चरित्र को देखकर यह समझ गए कि अब आग्रह से काम नहीं चलेगा; बल्कि भय से काम होगा। और आक्रमणकारियों की सीमा में घुसकर आक्रमण करना अपराध नहीं है।
जब राष्ट्र की धरती पर लहू बहता है, तब मौन नहीं— संकल्प उठते हैं।
शब्द नहीं—शौर्य बोलता है;और जयघोष नहीं—न्याय की गूंज सुनाई देती है। अब समय श्रद्धांजलि का नहीं, प्रतिकार का है।
अब समय कायरता का नहीं, कठोर निर्णयों का है।
पाकिस्तान जो भाषा समझता है, अब उसी भाषा में जवाब देने का समय आ गया है।
मोदी जी ! अब और नहीं... देश के वीर सैनिकों की देह पर पुष्पचक्र अर्पित करने का समय नहीं रहा। अब आवश्यकता है कि नापाक को उसकी सरहद में घुसकर मारा जाए।
देश के भाग्यविधाता और माननीय! जनता के मन की बात सुनें और
अब शौर्य का प्रदर्शन करें ?
लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )