बहकी जुबानें , बिगड़ी मर्यादा, मंत्री से सांसद फिर विधायक तक

मध्यप्रदेश की साप्ताहिक घटनाओं का
रोजनामचा
हरीश मिश्र
शुरुआत अच्छी खबर से, भोपाल और इंदौर मेट्रोपॉलिटन रीजन बन रहा है और लाड़ली बहनों को सम्मान राशि मिल गई।
भारतीय सेना के शौर्य को नमन करने तिरंगा लेकर सड़कों पर निकले लोग।
वैसे एक पखवाड़े से सिंदूर की देश, परदेस और प्रदेश में चर्चा हो रही है। पहलगाम में नरपिशाचों ने सिंदूर से होली खेली। भारतीय सेना ने रक्तबीजों से प्रतिशोध लिया। इधर, प्रदेश में मंत्री, सांसद, विधायक की ज़ुबान फिसल रही है।
पिछले सप्ताह आदिमानव विभाग के मंत्री की ज़ुबान, नियंत्रण खो बैठी। ज़ुबान फिसली नहीं, बहकी। खूब उत्पात मचाया। जीभ पर काबू नहीं रख सके। फिर शुरू हुआ महासंग्राम, कोर्ट-कचहरी, थाने-चौराहे पर पुतला दहन, सोशल मीडिया और सियासी गलियारों तक इस्तीफे की मांग का दौर।
पिछले साल शाजापुर में एक ड्राइवर ने कलेक्टर से कहा—“अच्छे से बोलिए।”
उत्तर मिला—“तुम्हारी औकात क्या है?”
ड्राइवर बोला—“यही तो लड़ाई है, कि हमारी कोई औकात नहीं है।”
यह संवाद सत्ता और समाज के बीच खिंची उस रेखा को बेनक़ाब करता है, जहां भाषा सेवा नहीं, सत्ता का शस्त्र बन जाती है। वीडियो वायरल हुआ। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सुदर्शन चक्र चलाया—कलेक्टर को हटा दिया, क्योंकि सामने नौकरशाही थी।
लेकिन सवाल अब भी वहीं ठहरा है—यही मापदंड मंत्री पर लागू क्यों नहीं ? ज़हरीली ज़ुबान वाले मंत्री को मंत्रिमंडल से क्यों नहीं हटाया गया? नौकरशाही पर सुदर्शन चक्र चलाने वाले हाथ, मंत्री के कांधे तक क्यों नहीं पहुंच रहे?
अनुशासन का डंडा अगर एक तरफा हो, तो वह चर्चा का विषय बन जाता है। महाभारत की सभा में जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ, तब सत्ता शीर्षासन कर रही थी—भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र मौन थे। आज जब देश की बेटी, सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया पर अभद्र टिप्पणी की गई, तब दीनदयाल की रीढ़ की हड्डी में लचक और अटल इरादे कमज़ोर हुए हैं, सत्ता शीर्षासन कर रही है।
बस, न्याय की आंखों से पट्टी हटी। गटर छाप भाषा पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद, इंदौर के मानपुर थाने में मन मारकर आपराधिक प्रकरण रोजनामचे में दर्ज हुआ। दूसरी तरफ भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अभी भी मौन है।
जब ज्ञानी, अनुभवी, देश निष्ठ नेतृत्व, समझने में त्रुटि करे, तो यह दुर्भाग्य ही कहलाता है। मंत्री जी के बहके वचन सुनते ही कांग्रेस को मुद्दा मिल गया। सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस राजभवन के सामने बैठ गई, उमंगें हिलौरें लेने लगीं, कांग्रेसी अट्टहास करने लगे।
अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि महुआ विभाग के मंत्री की ज़ुबान भी फिसल गई। थोड़ा सांसद कुलस्ते, विधायक नारायण प्रजापति भी बहके। शिवपुरी से भाजपा विधायक देवेन्द्र जैन ने अपनी ही सरकार के खिलाफ तीखे तेवर दिखाए हैं।गुना विधायक पन्नालाल शाक्य का दर्द छलका। पूर्व गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि उनके खिलाफ तंत्र-मंत्र हो रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि पूरी भाजपा बहक रही है। राष्ट्रवाद की जीती हुई सम्पत्ति हार रही है। नेताओं पर दुर्बुद्धि सवार है। ऐसे बयान दे रहे हैं कि देश हक्का-बक्का है और कान सुन्न हो गए हैं।
राजनीति क्या है? राजनीति एक रंगमंच है, जिसमें समस्त धुरंधर चाल चलते हैं और छोटे-छोटे चमचे परिक्रमा करते हैं। राजनीति के सदृश्य कोई दूसरा खेल नहीं है। पग-पग पर शह-मात, विजय-पराजय का खेल चलता है।
इस सप्ताह तेज़ रफ्तार स्कूल बस ने मौत का कहर बरपाया। बाणगंगा चौराहे पर रेड सिग्नल में खड़ी आठ गाड़ियों को रौंद दिया। इस हादसे में महिला चिकित्सक की मौत हो गई। मौत के कहर के बाद सरकार जागी। पूरे प्रदेश में स्कूल बसों की चेकिंग अभियान प्रारंभ हुआ। सरकार भी जब तक हादसा नहीं होता, सोई रहती है और हादसों के बाद जागती है।
हादसे से याद आया, दमोह में भी हादसा हुआ। कलेक्टर ने शिक्षा सुधार का संकल्प लिया। जिन स्कूलों का परीक्षा परिणाम 30% से कम आया, निर्णय लिया, उन स्कूलों के शिक्षकों को देनी होगी परीक्षा। लेकिन शिक्षकों की आज़ादी के लिए लड़ने वाले आज़ाद, कामचोर, खलनायक शिक्षक संघ को शिक्षकों के परीक्षा देने पर फिर आपत्ति है। ज्ञापन देने वाले, आपत्ति करने वाले शिक्षक न खुद सुधरते हैं, न परीक्षा परिणाम सुधरने देते हैं।
जीरापुर में वैवाहिक समारोह के दौरान दूल्हा-दुल्हन को धुएं के बीच मंच पर आना था, लेकिन मंच पर आने से पहले नाइट्रोजन के कंटेनर में गिरने से एक बच्ची की मौत हो गई। हादसे ने खुशियों को धुआं-धुआं कर दिया। कुल मिलाकर इस सप्ताह आंधी भी आई और चली गई, किसी शायर ने कहा है,
दिए बुझाती आंधी शोलों को भड़काती है।
आंधी को भी दुनिया दारी आती है।
यार सियासत की गलियों में मत जाना,
नागिन अपने बच्चों को खा जाती है।
इस सप्ताह राजनीति के तमाशे मध्यप्रदेश में मुफ्त में देखे।
लेखक (स्वतंत्र पत्रकार)
9584815781