मिट्टी में जिंक की कमी पूरी कर किसान प्रति हेक्टेयर छः हजार रुपये तक बढ़ा सकते हैं अपनी आय

जबलपुर l फसलों के विकास के लिए ज़िंक महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है। यह फसल उत्पादन के साथ- साथ उनकी गुणवत्ता बढ़ाने में भी सहायक है। मृदा में ज़िंक की कमी फसलों के लिये गंभीर समस्या है। इसलिये फसल उत्पादन में जिंक का उचित प्रबंधन आवश्यक होता है। जिन खेतों में धान के बाद गेहूं की बोनी जाती है, वहाँ जिंक की आवश्यकता अधिक होती है।
उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने जिले के किसानों को मृदा में ज़िंक की कमी से फसलों को होने वाले नुकसान से अवगत कराते हुए ज़िंक की आपूर्ति के उपायों की जानकारी दी है।
श्री आम्रवंशी ने बताया कि धान की पत्तियों में कत्थई रंग के धब्बे ज़िंक की कमी का लक्षण है। यह सामान्य रूप से रोपाई के दो से चार सप्ताह के बाद दिखाई देते है। धब्बे आकार में बड़े होकर पूरी पत्ती में फैल जाते है। जिसे खैरा रोग के नाम से जाना जाता है। जिंक की अत्यधिक कमी होने पर कल्लों की संख्या कम हो जाती है, जड़ों की वृद्धि रूक जाती है एवं बालियों में बांझपन आ जाता है। फलस्वरूप फसल उत्पादन में कमी होती है। इसी प्रकार गेंहू में ज़िंक की अत्याधिक कमी की दशा में पत्तियों के मध्य भाग में मटमैले हरे रंग के धब्बे बनते हैं। यह बाद में गहरे हरें रंग में बदल जाते है तथा कुछ दिनों में पत्तियां गिर जाती है। पत्तियों के अग्रक एवं आधार हरे रहते है। गेहूं फसल में जिंक की कमी के कारण कल्ले कम बनते है, पौधों की बढ़वार कम हो जाती है और पौधा छोटा रह जाता है। अत्यधिक कमी की दशा में सैकडों कल्ले बनते है जो अत्यंत छोटे होकर झाड़ीनुमा हो जाते है।
श्री आम्रवंशी ने बताया कि ज़िंक की आपूर्ति के लिए ज़िंक सल्फेट एवं ज़िंक चीलेट्स समान रूप से प्रभावी उर्वरक हैं। ज़िंक सल्फेट 21 प्रतिशत तथा ज़िंक चीलेट्स 12 प्रतिशत ज़िंक की मात्रा से युक्त है। यह आर्थिक दृष्टिकोण से सुलभ एवं प्रभावकारी हैं। मृदा विश्लेषण के आधार पर 25 से 50 किलोग्राम ज़िंक सल्फेट का प्रयोग प्रति हेक्टेयर भूमि में करने पर जिंक की कमी को दूर किया जा सकता है। साथ ही फसल उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है। श्री आम्रवंशी के मुताबिक जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का मूल्य लगभग एक हजार रुपए है। इसके द्वारा 15 से 20 प्रतिशत फसल उत्पादन में वृद्धि के साथ प्रति हैक्टेयर 5 से 6 हजार रुपए का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। एक बार जिंक सल्फेट डालने के तीन वर्ष तक उसका प्रभाव रहता है। साथ ही गेंहू फसल में भी पूरा उत्पादन मिलता है। सामान्यतः जिंक का प्रयोग खेती की तैयारी के समय खेत में भुरक कर या खड़ी फसल में जिंक सल्फेट 0.5 से 1 प्रतिशत का घोल बनाकर स्प्रे कर किया जा सकता है।