छिंदवाड़ा l कलेक्टर श्री शीलेन्द्र सिंह के मार्गनिर्देशन में आज उप संचालक कृषि श्री जितेन्द्र कुमार सिंह द्वारा जिले के विकासखंड चौरई के ग्राम समसवाडा में जीरो टिलेज तकनीक से हैपीसीडर द्वारा मूँग की बोनी की गई। कृषक श्री रंजीत राय के खेत में फसल का निरीक्षण किया गया और किसानों से चर्चा की गई । किसानों को बताया गया कि इस तकनीक से गेंहूँ की कटाई के तत्काल बाद हैपीसीडर या सुपरसीडर द्वारा बिना जुताई किये सीधे बोनी करने से समय की बचत होती है, खरपतवार नहीं होते, फसल अवशेष मिट्टी में मिल जाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ ही मालचिंग हो जाने से पानी की बचत होती है, कम पानी में फसल आ जाती है व लागत कम लगती है। इस प्रकार इस तकनीक के उपयोग से किसान बिना नरवाई जलाये मूँग फसल की बोनी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसान नरवाई में आग न लगायें, बल्कि हैपीसीडर व सुपरसीडर से बोनी कर फसल अवशेष का प्रबन्धन करें। उन्होंने बताया कि ज़िले में लगभग 500 एकड़ में इस वर्ष जीरो टिलेज तकनीक से मूँग की बोनी की गई है। भ्रमण के दौरान कृषि विस्तार अधिकारी श्री एस.पी.उईके व श्री एस.एल.मरावी भी उपस्थित थे।            ज़िले में लगभग 3.15 लाख हेक्टर क्षेत्र में गेंहूँ लगभग 50 हज़ार हेक्टर में चना एवम् लगभग 30 हज़ार  हेक्टर में सरसों की फसल लगाई जाती है । चौराई छिंदवाड़ा अमरवाडा ब्लॉक एवम् कुछ क्षेत्र पारसिया मोहखेड़ बिछुआ ब्लॉक में सिंचित गेंहूँ की खेती की जाती है जो पूरे गेंहूँ के क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र में हॉर्वेस्टर से गेंहूँ की कटाई होती है शेष 40 प्रतिशत क्षेत्र में मजदूरो द्वारा गेंहूँ की कटाई होने से उस क्षेत्र में नरबाई में आग नहीं लगाई जाती एवम् उस क्षेत्र में जहां हार्वेस्टर से गेंहूँ की कराई होती है उन क्षेत्रों में
ग्रीष्मकालीन मूँग की जल्दी बोनी करने के कारण किसान नरबाईं में आग लगाते हैं जो की अत्यंत हानिकारक है। नरबाई जलाने की इस समस्या से निजात पाने के लिये जीरोटिलेज तकनीक से हैपीसीडर/ सुपरसीडर द्वारा बिना जुताई किये हार्वेस्टर के कटाई के तत्काल बाद ही सीधे मूँग की बोनी करके ( संरक्षित खेती) द्वारा 
1-समय की बचत
2-खर्चे की बचत( बिना जुताई किये सीधे बोनी से एवम् खरपतवार में लगने वाले खर्चे से बचत करके एवम् एक सिंचाई की बचत)
3-नरबाई ( फसल अवशेष)मिट्टी में मिल जाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है
4 - नरबाई खेत में रहकर मलचिंग  का कार्य करती है जिससे खेत में नमी बनी रहती है पानी भी कम लगता है एवम् एक सिंचाई की बचत हो जाती है
5-फसल अवशेष द्वारा मलचिंग होने से खरपतवार भी कम होते हैं
खर्चे की बचत होती है
6- नरबाई न जलाने से मिट्टी के स्वास्थ में सुधार के साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचायां जा सकता है