सामयिक सलाह संतरा फसल में बहार लाने करें महत्वपूर्ण कृषि क्रियाए
Updated on 1 May, 2023 09:10 PM IST BY INDIATV18.COM
सीहोर l विगत 2-3 वर्षों से वर्षा की अनियमित्ता के कारण संतरा में फल बहार आने की प्रक्रिया बाधित हुई है और अफलन की स्थिति निर्मित होने पर संतरा उत्पादन में कमी आयी है। कृषि वैज्ञानिक द्वारा जिले में संतरा फसल की खेती करने वाले किसान भाई जिनके बगीचे 5 वर्ष से अधिक उम्र के है, उन बगीचों में इस वर्ष अच्छी फल आये एवं कृषकों को अधिक से अधिक उत्पादन मिले और अफलन की स्थिति निर्मित नही हो, संतरा उत्पादक किसान भाईयो को सलाह दी गई है कि जून माह में संतरा बगीचो में खाद एवं उर्वरक प्रबन्धन, सिंचाई प्रबन्धन एवं पादप वृद्धि नियंत्रको के उपयोग से अच्छी बहार ली जा सकती है।
उर्वरक प्रबंधन खाद एवं उर्वरक देने का समय मात्रा एवं विधि पूर्ण विकसित संतरे के पौधों के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्रा प्रति पौधा देने के लिए किसान भाई खाद एवं उर्वरक अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या केंचुआ खाद मात्रा प्रति पौधा 30-40 कि.ग्रा. या 20 कि.ग्रा., डीएपी (फास्फोरस एवं नत्रजन की पूर्ति) या सिंगल सुपर फास्फेट (फास्फोरस के साथ-साथ केल्शियम एवं सल्फर तत्व की पूर्ति) 1.50 कि.ग्रा. या 4 कि.ग्रा., म्यूरेट ऑफ पोटाश 500 ग्राम, जिंक सल्फेट 100 ग्राम, मेंगनिसियम सल्फेट 100 ग्राम तथा सूक्ष्म पोषक तत्व-मेंगनीज सल्फेट, जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट एवं बोरोन (प्रत्येक तत्व की मात्रा) 30-50 ग्राम तक होना चाहिए का उपयोग करें। भूमि से खादों का प्रयोग सामान्यतः वृक्ष के फैलाव के घेरे में दिया जाना चाहिए। खादो को फल वृक्ष के बने के निकट नहीं डालना चाहिए, क्योंकि यह जड़ो तक नही पहुंच पाने के कारण पौधों को उपलब्ध नही हो पाती है। वृक्षों की पोषक तत्व गृहण करने वाली जड़े अधिकांश मात्रा में वृक्ष के फैलाव के घेरे मे पायी जाती है।
खाद का प्रयोग भी इसी घेरे के निकट की भूमि में करना चाहिए। इसलिये जहां तक सम्भव हो थालों का आकार पौधों के आकार के साथ बढ़ाया जाना चाहिये। फास्फोरस और पोटाश युक्त खाद को पौधों के घेरे में 25-30 से.मी. की गहराई में डालना चाहिए। नत्रजन युक्त खाद को थाले के घेरे में छिड़ककर भूमि में मिला देना चाहिये। मुख्य रूप से गोबर की खाद, वर्गीकम्पोस्ट के साथ उर्वरकों का प्रयोग जून-जुलाई माह में करने से अधिक से अधिक फूल आयेंगे। साथ ही फूल - फल झड़ने की समस्या भी कम रहेगी। उर्वरकों का प्रयोग वर्ष में दो बार किया जाना चाहिये। उर्वरक की आधी मात्रा फूल आने के पूर्व (जून-जुलाई) में तथा शेष आधी मात्रा फलों के वृद्धिकाल के समय (अक्टूबर-नवम्बर) माह में देना अधिक लाभप्रद रहता है। सिंचाई प्रबंधन संतरे के बगीचे में उचित जल प्रबंधन एक महत्वपूर्ण घटक है इसलिये जब संतरे के पौधों में तान देने के बाद प्री मानसून या पानी बरसने के बाद अधिक दिनों की पानी की तान वाटर स्ट्रेस आने से फूल आने की किया रूक जाती है।
वानस्पतिक वृद्धि शुरु हो जाने से संतरे के पौधों में फल बहार नहीं आ पाती है। ऐसी स्थिति में सिंचाई एक महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि संतरे की फूल, फल, वृद्धि के लिये औसत तापमान 25-30 डिग्री सेन्टीग्रेट के बीच उपयुक्त होता है। सिंचाई के माध्यम से तापमान कम कर सकते है तथा फूल आने के लिये पौधों को प्रेरित कर सकते हैं। इसके लिये सूक्ष्म सिंचाई में बूंद-बूंद सिंचाई एवं पेड़ो के चारों तरफ फव्वारा सिंचाई का उपयोग करके औसत तापमान 30-35 डिग्री सेन्टीग्रेट तक ला सकते है। जो कि संतरे के पौधों में फूल आने हेतु उचित वातावरण होता है। पादप वृद्धि नियंत्रकों का उपयोग किसान भाई जिन संतरा के बगीचों में पानी रोक रखा है तथा पौधे सुशुप्ता अवस्था में होने एवं असमय भारी बारीश होने की स्थिति में फूल आने से पहले शीघ्र पादप वृद्धि नियंत्रक क्लोरमेक्वाईट क्लोराइड 50 प्रतिशत एसएल 2 मिली.ली. पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल से छिडकाव करें या कभी-कभी संतरे के पौधों में तान देने एवं समय से वर्षा की स्थिति में भी फूल की अवस्था नहीं आती है। ऐसी अवस्था में पादप वृद्धि अवरोधक पेक्लोब्यूट्राजोल 8 मिली. / पौधा पानी में घोलकर जड़ क्षेत्र में मिलाने से पौधों की वानस्पतिक वृद्धि को रोककर फूल आने के लिये प्रेरित करता है।