सागर l जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा बुलाई गई  बासमती की जीआर 206 प्रजाति के धान से सुगंधित धान के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए आजीविका मिशन और एसएफआई फाउंडेशन ने देवरी विकासखंड के ग्राम नंदना ग्राम कजेरा मुहर खास में बुनियाद रखी है। कृषि विज्ञान केंद्र देवरी के डॉ. आशीष त्रिपाठी के द्वारा यह बीज उपलब्ध कराया गया  है।इस गांव में महिलाओं ने सामुदायिक नर्सरी का निर्माण किया है। इसके पीछे वजह यह थी कि नर्सरी का समुचित तरीके से प्रबंधन हो सके ।ग्राम नंदना की मां नर्मदा समूह से जुड़ी श्रीमती लक्ष्मी सेन ने अपने खेत में धान की 15 से अधिक नर्सरी तैयार की  और 15 दिवस से कम आयु के पौधों का 25 सेंटीमीटर की दूरी पर एक एक पौधे का रोपण शुरू कर दिया है ।उन्होंने सात दिवस की अवधि से लेकर 12 दिवस की अवधि के पौधों को अपने खेत में प्लांट कर लिया है ,हालांकि अभी रोपाई के लिए काफी हिस्सा बाकी है. बाकी महिलाओं ने भी इनकी देखा सीखी अपने खेतों में इस नर्सरी से पौधे ले जाकर रोपाई का काम प्रारंभ कर दिया है। अनूप तिवारी जिला प्रबंधक कृषि ने बताया कि धान उत्पादन की यह एक आधुनिक तकनीक है। आमतौर पर किसान प्रति एकड़ 40 से 45 किलो बीज का इस्तेमाल करता है, जबकि इसी विधि से मात्र दो से ढाई किलो बीज में 1 एकड़ के खेत की रोपाई हो जाती है ।इसमें प्रत्येक पौधे को 25-25 सेंटीमीटर की दूरी अर्थात कतार से कतार और पौधे से पौधे के बीच 25 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है । 15 दिवस से कम अवधि के पौधों को एक एक पौधे को निरूपित किया जाता है ।अनुमान है कि इस विधि से परंपरागत विधि की तुलना में 2 से ढाई गुना अधिक उत्पादन होता है। आमतौर पर 40 किलो बीज लगाए जाने पर किसान को 8 से 10 क्विंटल या 12 क्विंटल पैदावार मिलती है ,जबकि इसी  विधि से यही उत्पादन 18 से 20 और 24 क्विंटल तक होता है। ग्राम में कृषि विस्तार सदस्य दीपांशु शर्मा इन महिलाओं के साथ सघन रूप से इस तकनीकी  विस्तार का कार्य कर रहे हैं । दीपक आर्य जिला कलेक्टर का कहना है कि जिले के किसानों को जहर रहित विष मुक्त कम लागत कृषि तकनीकी से जोड़ा जा रहा है ।सोयाबीन से मार खाए हुए किसानों को धान और सुगंधित धान बासमती धान जैसे बीजों से जोड़कर उनकी उत्पादन क्षमता के साथ-साथ उनकी आमदनी को बढ़ाए जाने की सोच के साथ इस विधि को सागर जिले में प्रारंभ किया गया है।श्री  पीसी शर्मा मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत का कहना है कि इस विधि से महिलाओं को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है ।इसीलिए ऐसे ग्रामों में इस विधि के कुछ प्रदर्शन प्लान बनाए जा रहे हैं ,जहां धान की खेती अधिक होती है।