झाबुआ। कलेक्टर नेहा मीना के सतत मार्गदर्शन में रबी मौसम में 2024-25 अंतर्गत फसलो की स्थिति का जायजा लेने हेतु जिला स्तरीय दल उप संचालक, कृषि जिला झाबुआ श्री एन.एस. रावत के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र झाबुआ के वैज्ञानिक डॉ. वी. के. सिंह एवं संबंधित विकासखण्ड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्री ज्वाला सिंगार एवं संबधित क्षेत्र कृषि विस्तार अधिकारी श्री मुकेश निनामा, श्री रुपचन्द डामोर एवं श्री भंवरसिंह हठिला के द्वारा जिले के रामा विकासखण्ड के ग्राम रोटला, बोचका, गोलाबड़ी, कोकावद, नवापाड़ा एवं गोमला क्षेत्र में रबी फसल चना, गेहूँ, मक्का एवं स्ट्राबेरी फसलो का निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान चना फसल में आंशिक रूप से चने की इल्ली का प्रकोप देखा गया। वर्तमान में आंशिक रुप से शीत लहर का असर भी दिखाई दे रहा है। रात का पारा लगातार गिर रहा है, यदि पारा चार डिग्री से नीचे जाता है तो शीत लहर व पाले की संभावना बनती है। साथ ही शाम को आसमान साफ हो, हवा बन्द हो, तापमान कम हो तो सुबह पाला पड़ने की सम्भावना होती है। पाला पडने से रबी सीजन की फसलों में 20 से 70 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है अतः इस समय रबी सीजन की फसल को सुरक्षा की दरकार है। पाले से फसल को बचाने के लिए किसानों को उचित उपचार करना चाहिए।

चने की इल्ली की रोकथाम हेतु रासायनिक उपायः- प्रोफेनाफॉस 50 ई.सी. 1250 मि.ली. का 500 लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर छिडकाव करें। पाले का फसल पर असरः- पाले के प्रभाव से फल और फूल झडने लगते है प्रभावित फसल का हरा रंग समाप्त हो जाता है। पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखता है। ऐसे में पौधों के पत्ते सडने से बैक्टीरिया जनित बीमारियों का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है। पत्ती, फूल एवं फल सूख जाते है। फल के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं और स्वाद भी खराब हो जाता है। पाले से फल और सब्जियों में कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। सब्जियों पर पाले का प्रभाव अधिक होता है। कभी-कभी शत प्रतिशत सब्जी की फसल नष्ट हो जाती है। शीत ऋतु वाले पौधे 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान सहने में सक्षम होते है। इससे कम तापमान होने पर पौधे की बाहर व अन्दर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है।

पाले से फसल को बचाने के उपाय दीर्घकालीन उपाय :- फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर और बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, एवं जामुन आदि के पेड़ लगायें।

सुरक्षात्मक उपाय :-

       जिस रात पाला पडने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए। नमी युक्त जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है और भूमि का तापमान कम नहीं होता है, 0-5 से 2-0 डिग्री तक तापमान बढ़ जाता है। पौधों को पुआल या पॉलीथीन शीट से ढँक दें ध्यान रहे पौधों का दक्षिण-पूर्वी भाग खुला रहे। सर्व प्रथम हल्की सिचाई करें तथा रात 10 बजे के पश्चात खेत के उत्तर एवं पश्चिम दिशा की मेडों पर धुँआ करे।

जैविक उपचार :-

        जैविक नियंत्रण के लिए 500 मिली. ताजा गोमूत्र अथवा 500 मिली. गाय के दूध को प्रति पम्प (15 लीटर पानी) की दर से घोल बनाकर पाले से पूर्व फसल पर छिडकाव करे। पाले से बचाव हेतु ग्लूकोज का उपयोग अत्यंत प्रभावी उपाय है। खडी फसल पर 25 ग्राम ग्लूकोज प्रति पम्प की दर से छिडकाव करें। यदि फसल पाले की चपेट में आ गई हो तो तुरंत 25 से 30 ग्राम ग्लूकोज प्रति पम्प (15 लीटर पानी) की दर से प्रभावित फसल पर छिड़काव कर दें।

रासायनिक उपाय :-सल्फर डस्ट 08 से 10 किग्रा. प्रति एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करे। थायो यूरिया 15 ग्राम प्रति पम्प (15 लीटर पानी) अथवा 150 ग्राम 150 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से खडी फसल पर छिडकाव करे। म्यूरियट आफ पोटाश 150 ग्राम प्रति पम्प (15 लीटर पानी) अथवा 1-5 किग्रा प्रति एकड की दर से 150 लीटर पानी के साथ छिडकाव करें। सल्फ्यूरिक अम्ल 15 मिली प्रति पम्प (15 लीटर पानी) अथवा 150 मिली. को 150 लीटर पानी में सावधानी पूर्वक घोल बनाकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें। पाले से बचाव हेतु ग्लूकोज का उपयोग अत्यंत प्रभावी उपाय है। खडी फसल पर 25 ग्राम ग्लूकोज प्रति पम्प की दर से छिडकाव करें। यदि फसल पाले की चपेट में आ गई हो तो तुरंत 25 से 30 ग्राम ग्लूकोज प्रति पम्प (15 लीटर पानी) की दर से प्रभावित फसल पर छिड़काव कर दें। एन पी के (18:18:18 अथवा 19:19:19 अथवा 20:20:20) 100 ग्राम 25 ग्राम एग्रोमिन प्रति पम्प की दर से पाले से प्रभावित फसल पर छिडकाव करके उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। उपरोक्त रासायनिक उपायों में से किसी एक उपाय का प्रयोग करें। किसान भाई नजदीकी कृषि कार्यालय अथवा मैदानी कृषि अमले से सम्पर्क कर उचित सलाह लें। कृषि विज्ञान केन्द्र से भी सम्पर्क कर उचित सलाह लें।