पांढुर्णा जिले के ग्राम तिगांव के प्रगतिशील किसान श्री नरेन्द्र ठाकरे ने अपने सतत प्रयासों और नवाचार से जैविक खेती में मिसाल कायम की है। श्री ठाकरे, जो कि एक समर्पित किसान हैं, ने अपनी 5.188 हेक्टेयर कृषि भूमि पर संतरा, मक्का, तुअर, कपास, मिर्च और शिमला मिर्च जैसी फसलों की खेती करते हुए अपनी पहचान बनाई है। साथ ही, उनके पास 35 पशुधन भी हैं, जिनका समुचित देखभाल कर वे जैविक खाद उत्पादन में भी योगदान दे रहे हैं।
        कृषक श्री ठाकरे ने आत्मा परियोजना के मार्गदर्शन में कई वर्षों से जैविक खेती को अपनाया है। अपनी खेती में वे किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते हैं। उनके अनुसार, "जैविक खेती न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है, बल्कि हमारी सेहत और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखती है।"
        कृषक श्री ठाकरे ने अपने खेत में 30 से अधिक वर्मीपिट तैयार किए हैं, जिससे वे जैविक खाद का निर्माण कर अपनी फसलों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं। इसके अलावा उन्होंने चार एजोला टैंकों का निर्माण किया है, जिसका उपयोग वे पशुओं के चारे के रूप में करते हैं और पानी का प्रयोग फसल वृद्धि के लिए प्राकृतिक उत्प्रेरक के रूप में करते हैं।
         पशुओं के लिए पोषक चारे की व्यवस्था के लिये कृषक श्री ठाकरे ने नेपियर घास की भी खेती शुरू की है। कीट प्रबंधन के लिए वे परंपरागत तरीकों जैसे गौमूत्र, नीम काढ़ा, सड़ा हुआ छाछ और विभिन्न पत्तियों का उपयोग कर अपनी फसलों को प्राकृतिक रूप से सुरक्षित रखते हैं। इस बारे में वे कहते हैं, "रसायनों पर निर्भरता कम करके हम अपनी मिट्टी को फिर से जीवंत बना सकते हैं, जिससे फसल का स्वाद और गुणवत्ता दोनों ही बेहतरीन होती है।"
         कृषक श्री ठाकरे के खेत में लगभग 2000 संतरे के पौधे हैं, जिससे उन्हें प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख रुपये की शुद्ध आय प्राप्त होती है। इसके अलावा, मक्का, तुअर और अन्य सब्जियों की फसलों से उन्हें करीब 2.5 लाख रुपये की अतिरिक्त आमदनी भी होती है। खास बात यह है कि श्री ठाकरे को अपने संतरे को जिले की मंडी तक ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि उनके संतरे की उत्कृष्ट गुणवत्ता के चलते व्यापारी स्वयं उनके खेत में आकर संतरे खरीदते हैं।
        "जब आपके उत्पाद की गुणवत्ता बेहतरीन होती है, तो ग्राहक खुद आपके पास आता है," श्री ठाकरे गर्व के साथ कहते हैं। उनके संतरे का आकार, स्वाद और गुणवत्ता इतनी बेहतर होती है कि उन्हें बाजार मूल्य से 20 प्रतिशत तक अधिक दाम प्राप्त होता है।
         रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और टॉनिक पर होने वाले खर्च से भी श्री ठाकरे हर वर्ष लगभग 3 लाख रुपये की बचत कर रहे हैं। उनकी इस सफलता का ही परिणाम है कि वर्ष 2015-16 में आत्मा परियोजना के तहत 'परंपरागत कृषि विकास योजना' के अंतर्गत उनके ग्राम के 50 किसानों ने जैविक खेती को अपनाते हुए 'तिगांव जैविक समिति' का गठन किया है। इस समिति ने जैविक संतरे के उत्पादन के साथ-साथ विपणन कार्य को भी शुरू किया है, जिससे क्षेत्र में उनके जैविक संतरे की विशेष पहचान बन चुकी है।
         कृषक श्री ठाकरे का सपना है कि वे अपने जैविक संतरे का उत्पादन दोगुना करें। इसके अलावा, उनका समूह जल्द ही एक कृषक कंपनी का गठन कर 'जैविक संतरा जूस' के उत्पादन की दिशा में भी कार्य करेगा। इस बारे में वे कहते हैं, "हमारा लक्ष्य न केवल संतरा उत्पादन को बढ़ावा देना है, बल्कि जैविक उत्पादों के जरिए उपभोक्ताओं तक स्वास्थ्यवर्धक विकल्प भी पहुंचाना है।कृषक श्री नरेन्द्र ठाकरे का यह सफर न केवल उनकी मेहनत और सफलता का प्रतीक है, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गया है। उनका यह प्रयास जैविक खेती के महत्व को दर्शाता है और यह साबित करता है कि परंपरागत कृषि पद्धतियों के साथ आधुनिक तकनीकों को अपनाकर किसान अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं।