छिंदवाड़ाl जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र छिंदवाडा के प्रयास से विशेषकर मध्यप्रदेश के लिये पहली बैंगनी रंग की किस्म मक्का की नई प्रजाति जवाहर मक्का-1014 विकसित की गई है। यह प्रजाति अब मध्यप्रदेश राज्य के किसानों और आम जनों के लिये भी आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र चन्दनगांव छिन्दवाड़ा में उपलब्ध रहेगी ।

      आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र चन्दनगांव छिन्दवाड़ा के प्रधान वैज्ञानिक एवं सहसंचालक अनुसंधान डॉ.विजय पराडकर ने बताया कि गत 2 मई को दिल्ली में आयोजित 90वीं केन्द्रीय फसल मानकअधिसूचना एवं कृषि के लिए फसल किस्म विमोचन उप समिति की बैठक संपन्न हुई। डॉ.टी.आर.शर्मा डी.डी.जी.(आई.सी.ए.आर) की अध्यक्षता में संपन्न इस बैठक में आई.सी.ए.आर के आई.ए.आर.आई. संचालक डॉ.ए.के.सिंग और ए.डी.जी.सीड डॉ.डी.के.यादव मुख्य रुप से उपस्थित थे । इस बैठक में आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र छिंदवाडा द्वारा विकसित की गई न्यट्रीरीच/बायोफोर्टीफाइड मक्का की क्रिस्म जे.एम. 1014 (जवाहर मक्का 1014) को मध्यप्रदेश राज्य के लिए अधिसूचित किया गया है। अब इस प्रजाति की विकसित किस्म का बीज किसानों को अपने खेत में उत्पादन के लिये आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र चन्दनगांव छिन्दवाड़ा से उपलब्ध हो सकेगा और यह प्रजाति आम जनों के लिए भी उपलब्ध रहेगी । उल्लेखनीय है कि जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति प्रो.डॉ.पी.के.मिश्रा और संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ.जी.के.कौतु के मार्गदर्शन में आंचलिक अनुसंधान केन्द्र छिंदवाडा द्वारा यह प्रजाति विकसित की गई है। जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के आंचलिक अनुसंधान केन्द्र छिंदवाडा से प्रधान वैज्ञानिक एवं सहसंचालक अनुसंधान डॉ.पराडकरसहसंचालक अनुसंधान एवं वैज्ञानिक डॉ.गौरव महाजन का इस प्रजाति को विकसित करने में योगदान रहा है। इस अनुसंधान कार्य में केन्द्र के श्री मदनलाल पवारवैज्ञानिक डॉ.शिखा शर्माडॉ.संत कुमार शर्माडॉ.हेमलता व डॉ.संध्या बाकोडे का भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से योगदान रहा है।                              

 

      आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र चन्दनगांव छिन्दवाड़ा के प्रधान वैज्ञानिक एवं सहसंचालक अनुसंधान डॉ.पराडकर ने बताया कि मध्यप्रदेश राज्य से पहली बार न्यट्रीरीच/बायोफोर्टीफाइड प्रकार की किस्म विकसित कर किसानों को समर्पित की गई है । इस बीज की परिवक्ता 95-97 दिन की है अर्थात फसल बोने के बाद इस अवधि तक फसल पूरी पककर तैयार हो जायेंगी। इसकी औसत उपज भी 66.28 किग्रा. प्रति हैक्टेयर है। परीक्षण की अवधि के दौरान इस प्रजाति को सी.एम.एम-1014 कोड किया गया था जो कि आगे चलकर जवाहर मक्का-1014 के रूप में मध्यप्रदेश शासन द्वारा अनुमोदित कर म.प्र. के लिए अनुशंसित की गई है जो कि चेक जवाहर मक्का-216 प्रजाति की उपज से अधिक है। इसके अलावा पौधे की उचाई 211 सेमी, पौधे पर भुट्टे की ऊंचाई 95 सेमी. और सिल्क 50 दिन में आती है। यह प्रजाति हेलमिन्थोस्पापेरियम टरसिकम, हेलमिन्थोस्पापेरियम मयाडिस और तना छेदक के प्रति सहनशील है । साथ ही वर्षा आधारित क्षेत्र खासकर पठारी क्षेत्रों के लिये यह बेहद उपयुक्त है। यह मक्का प्रजाति अपने आप में समाज में कुपोषित शिशुओं और माताओं के लिए वरदान है, क्योंकि इस मक्का में लौह, तांबा व जस्ता की मात्रा अधिक है और पूर्व में इस केन्द्र से विकसित की गयी मक्का की प्रजातियां जवाहर मक्का-8, जवाहर मक्का-12 व जवाहर मक्का-216 से औसत रूप में इस मक्का की प्रजाति में लौह 86.50 प्रतिशत व जस्ता 22.20 प्रतिशत अधिक है।