मऊगंज में हुआ घटनाक्रम कोई सामान्य घटनाक्रम नहीं है l आदिवासी समाज बहुत सीधी - साधी समाज होती है ,वह कई अत्याचारों को झेलने के बाद भी मुंह नहीं खोलते.. , जिस एक्सीडेंट को लेकर आदिवासियों के मन में संदेह था कि वह एक्सीडेंट नहीं बल्कि हत्या थी ..? उस एक्सीडेंट की घटना की एक बार पुनः जांच होनी चाहिए आखिर सच्चाई क्या है सबके सामने आनी ही चाहिए l यदि वह एक्सीडेंट ना होकर सुनियोजित हत्या थी तो पुलिस ने उसे क्यों एक्सीडेंट बताया ..?  किस राजनेता के दबाव में ऐसा हुआ इसकी पूरी पड़ताल कर दोषियों को दंडित करने की आवश्यकता है और यदि वह घटना वास्तव में एक्सीडेंट ही थी तो किसने उस एक्सीडेंट की घटना को हत्या में बदलने की अफवाह फैला कर इन सीधे-साधे आदिवासियों के मन मे नफरत की इतनी आग भर दी l उन्होंने जिस अंदाज में युवक का अपहरण कर उसे बेरहमी से पीट-पीट कर मार डाला l  उन आदिवासियों के मन में आखिर कितनी आग थी उन्होंने एक एएसआई को भी पीट-पीट कर मार डाला वहीं तहसीलदार समेत कई पुलिस कर्मियों के हाथ पैर तोड़ दिए l  उन्हें डंडों और कुल्हाड़ी से निर्ममता से मारा गया, काटा गया l मृतकों और घायलों को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें कैसा मारा गया है..?  इन दोनों एंगल से निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है l सब जानते हैं कि पुलिस विवेचना कैसे करती है..?  पुलिस की विवेचना में कितने छेद होते हैं ..?  उन छेंदो से आरोपी बचकर कैसे निकल जाते हैं ..? यह किसी से छुपा नहीं है और रही बात अफवाह फैलने की तो यह भी पुलिस का इंटेलीजेंस फेलुअर ही है कि पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी ..? आए दिन पुलिस पर गंभीर आरोप भी लगते हैं लेकिन राजनेता और वरिष्ठ अफसरों की सांठ- गांठ से सिस्टम आंख मूंद लेता है l बात बढ़ते - बढ़ते इस बदत्तर हालात तक पहुंचती है l बड़ी घटना घटने के बाद ही सिस्टम की नींद कुछ समय के लिए खुलती है फिर सिस्टम तब तक के लिए फिर से गहरी नींद में सो जाता है जब तक की इतनी बड़ी घटना फिर से ना घटे ..? इस घटनाक्रम की बड़ी जांच की आवश्यकता है और जो भी इसमें दोषी है उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई कर एक नजीर पेश की जानी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की दुखद घटना की पुनरावृत्ति ना हो सके l