मोटे अनाज श्रीअन्न और प्राकृतिक खेती को मिलेगा बढ़ावा
सतना /दीनदयाल शोध संस्थान के कृषि विज्ञान केन्द्र मझगवां द्वारा आगामी वर्ष की कार्य योजना में मोटे अनाज (श्री अन्न) के उत्पादन और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना केंद्रित विषय के रूप में शामिल किया जायेगा। शुक्रवार को कृषि विज्ञान केंद्र के सभागार में कलेक्टर अनुराग वर्मा के मुख्यातिथ्य और संगठन सचिव अभय महाजन की अध्यक्षता में संपन्न वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक में समिति के सदस्यों से वर्ष 2024 की गतिविधियों की कार्य योजना के लिए सुझाव लिये गये। इस मौके पर जिला पंचायत अध्यक्ष रामखेलावन कोल, महापौर योगेश ताम्रकार, चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. डॉ भरत मिश्रा, सीईओ जिला पंचायत डॉ परीक्षित झाड़े, केंद्र के संचालक एमएस नेगी, जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक, चित्रकूट विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, रीवा, कटनी, सतना के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं सदस्य प्रगतिशील कृषक भी उपस्थित थे। कृषि विज्ञान केन्द्र मझगवां की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक में जिला पंचायत अध्यक्ष श्री कोल ने कहा कि खेती को लाभकारी धंधा बनाने और आय दुगुनी करने कृषि वैज्ञानिक अनुपयोगी रिक्त भूमि पर फसल लगाने की तकनीक और प्रेरणा दें। उन्होंने कहा कि मझगवां और परसमनिया के दूरस्थ पहाड़ी अंचल पर मोटे अनाज की खेती के प्रचलन को बढ़ावा देकर इन क्षेत्रों से कुपोषण दूर किया जा सकता है। महापौर योगेश ताम्रकार ने कहा कि आज की सबसे बड़ी आवश्यकता मोटे अनाज (मिलेट्स) को प्रमोट करने की है। प्रोडक्शन, प्रमोशन और प्रोसेसिंग तथा मार्केटिंग की सुविधा देकर इनका विस्तार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संसद और जी-20 के खान-पान में मिलेट को शामिल कर उदाहरण प्रस्तुत किया। वहीं सतना जिले के कृषक पद्मश्री बाबूलाल दहिया और रामलोटन कुशवाहा को पूरे देश में ख्याति मिली। महापौर ने कृषि से जुड़े सभी कार्यक्रमों में मिलेट के प्रदर्शन और विक्रय के लिए एक सेल काउंटर जरूर स्थापित करने की सलाह दी। कलेक्टर अनुराग वर्मा ने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र की गतिविधियों में हर क्षेत्र में हो रहे उन्नत कार्यों की झलक मिलती है। यहां कृषि की पद्धतियों में सुधार लाने और कृषि की मैदानी स्तर की कठिनाइयों से निजात दिलाने एक्सपर्ट कृषि वैज्ञानिक है। जो किसानों को गंभीरता से मार्गदर्शन करते हैं। उन्होंने कहा कि 10-15 वर्ष पहले गेहूं और धान के परंपरागत फसल के रकबे को बढ़ाने की बात होती थी। आज वर्तमान की आवश्यकता अनुसार परंपरागत फसलों के रकबे को कम कर मोटे अनाज, दलहन, तिलहन के क्षेत्र विस्तार का काम हो रहा है। सबसे ज्यादा दालों की खपत और उत्पादन भारत में होता है। राज्य शासन मध्यप्रदेश के 13 जिलों में अरहर की खरीदी कर रही है। जिसमें सतना जिला भी शामिल है। उन्होंने सतना जिले में अरहर की खेती और उत्पादन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत बताई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संगठन सचिव अभय महाजन ने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र कृषक समुदाय को नवीन एवं उन्नत तकनीकों से संसाधन आधारित टिकाऊ और लाभकारी खेती के लिये तकनीकी सहायता और सेवायें दे रहा है। उन्होंने बताया कि भारत रत्न राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख की 14वीं पुण्यतिथि पर 25 से 27 फरवरी को कृषि के विविध विषयों पर संगोष्ठियां होंगी। जिनमें देश-देशांतर के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक किसानों का मार्गदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि एक कागज बनाने में कई पेड़ काटे जाते हैं।