रबी फसलों के लिये कृषि विभाग द्वारा किसानों को उपयोगी सलाह
ग्वालियर l रबी मौसम में बेहतर पैदावार हासिल करने के लिये किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा किसानों को उपयोगी सलाह दी गई है। विभाग द्वारा बताई गई विधियों को अपनाकर किसान भाई अपनी फसलों को कीट व्याधियों से भी बचा सकते हैं।
गेहूँ फसल के लिये सलाह
उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास श्री आर एस शाक्यवार ने किसानों को सलाह दी है कि वे गेहूँ की फसल में बोनी के 60 से 65 दिन बाद जब गाँठ बनने लगे तब तीसरी सिंचाई करें। गेहूँ में युरिया का उपयोग सिंचाई के बाद ही करें। यूरिया का छिड़काव सुबह या रात में करना फायदेमंद रहता है। ओस की बूँदें यूरिया के संपर्क में आने से पौधों की पत्तियों को जला देती हैं।
चने की फसल के लिए सलाह
चने के खेत में कीट नियंत्रण के लिये टी आकार की खूटियाँ उपयोगी रहती हैं। फलों में दाना भरते समय खूटियाँ निकाल देना चाहिए। चने की फसल में इल्ली का प्रकोप अधिक होने पर कीटनाशी दवा फ्लूबेन्डामाइड 39.35 प्रतिशत एससी कीटनाशक दवा की 100 मिली मात्रा 400-500 लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए।
मटर के लिए सलाह
मटर की फसल में पत्तियों पर धब्बे दिखाई दें तो मेन्काजेब 75 प्रति. डब्ल्यूपी, 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। मटर की फसल में चुर्णिल फफूंदी रोग के लक्षण मसलन पत्तियों, फलियों एवं तने पर सफेद चूर्ण दिखाई दे तो इसके नियंत्रण के लिये फसल पर कैराथेन फफूंदनाशी दवा का एक मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
सरसों की फसल के लिए सलाह
तापमान में अधिक गिरावट के कारण सरसों में पाले की आशंका रहती है। इससे फसल बढ़वार और फली विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे बचने के लिये सल्फरयुक्त रसायनों का उपयोग लाभकारी होता है। किसानों को सलाह दी गई है कि डाई मिथाइल सल्फो ऑक्साईड का 0.2 प्रतिशत अथवा 0.1 प्रतिशत थायोयूरिया का छिड़काव करें। फसल पर माहू कीट का प्रकोप दिखाई देने पर डायमिथोएट 30 ईसी 2 मिली. प्रति लीटर या इमिडांक्लोप्रिड 0.2 मिली पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
दलहन इत्यादि के लिए सलाह
रबी दलहन में हल्की सिंचाई करना चाहिए। क्योंकि अधिक पानी देने से गैर जरूरी वानस्पतिक वृद्धि होती है और दाने की उपज में कमी आ जाती है। जब भी पाला पड़ने की आशंका हो तो फसल में हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। इसके अलावा खेती की मेढ़ों पर धुँआ भी करना चाहिए। सिंचाई के लिये स्प्रिंकलर, रैन-गन ड्रिप इत्यादि का उपयोग करना चाहिए, जिससे सिंचाई के जल का समुचित उपयोग हो सके।