संत रविदास की जन्म जयंती पर विशेष
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24 फरवरी 1376 संत शिरोमणी रविदास का जन्म भक्ति मार्ग से कर्त्तव्यबोध, स्वत्व जागरण और राष्ट्र चेतना का अभियान चलाया
--रमेश शर्मा
भारतीय स्वाधीनता के संघर्ष में जितना योगदान बलिदानियों और स्वाधीनता संग्राम सेनानियों का है उससे भी अधिक महत्वपूर्ण उन संतों और विभूतियों का है, जिन्होंने भक्ति मार्ग से स्वत्व जागरण और राष्ट्र चेतना का आव्हान किया था । ताकि भारत एक स्वाधीनता संपन्न राष्ट्र बन सके । राष्ट्र चेतना की ऐसी ही विलक्षण विभूति थे संत रविदास जी ।
भारत के सामाजिक, आर्थिक ताने बाने का विध्वंस कर विदेशी शक्तियों ने भारतीय समाज को बांटने के षड्यंत्र के साथ अपनी सत्ता स्थापना की नींव रखी । संत रविदास जी ने उनके इस षड्यंत्र को बेनकाब कर समाज के सभी वर्गों और जातियों को एक सूत्र में बाँधने अभियान चलाया था । उन्होंने भारत भर की पद यात्रा की और विभिन्न क्षेत्रों, वर्गों और समूहों के लोगों को अपने अभियान में जोड़ा। चित्तौड़ की महारानी और सुप्रसिद्ध संत मीरा बाई एवं झाला रानी उनकी शिष्य बनीं ।
रविदास जी का जीवनवृत
संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 को उत्तरप्रदेश के वाराणसी नगर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता कर्मा देवी (कलसा) साधारण गृहणीं थीं और पिता संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती था । यह परिवार चर्मशिल्प से जुड़ा था । उनका जन्म रविवार को हुआ था । इसलिये उनका नाम रविदास रखा गया । रविदास जी ने अपने परिवार परंपरा के अनुरूप जूता बनाने का काम सीख लिया था । जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे। वे जूता भी चाव से बनाते और भगवत् कीर्तन भी डूब कर करते । कितने ही भजन और दोहे वे बालवय में बनाकर सुनाया करते । बालक की रूचि देखकर उन्हें काशी में रामानंदाचार्य जी के आश्रम में पढ़ने भेज दिया गया । यह सल्तनत काल का समय था । भारतीय समाज भयग्रस्त था । चारों ओर अत्याचार, गरीबी और अशिक्षा हावी हो रही थी । उस समय के शासकों का प्रयास था कि हिन्दुओं का मतान्तरण करके मुस्लिम बनाया जाए। जब संत रविदास की ख्याति बढ़ने लगी । तब मुस्लिम संत 'सदना पीर' ने उनका मतान्तरण करने का प्रयास किया । उनका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उनपर दबाव बनाया । लेकिन रविदास जी वहाँ चलकर राजस्थान पहुँचे।
राष्ट्र जागरण और सामाजिक समरसता अभियान
रविदास जी ने राजस्थान में आश्रम बनाया और फिर देश व्यापी यात्रा पर निकल गये । रविदास जी ने जिस परिवार में जन्म लिया था उस परिवार की आजीविका का साधन चर्मशिल्प था । इस रविदास जी ने अपनी आजीविका के लिये चर्मशिल्प को ही अपनाया । वे जूता बनाने का सामान अपने साथ रखते । प्रवचन एवं संगोष्ठियों के बाद अपना काम करते । अपना काम न छोड़ने का कारण यह था कि वे समाज के प्रत्येक वर्ग में अपनी परंपरा के प्रति गौरव गरिमा का भाव जगाना चाहते थे
वे कहते थे-
जनम जात मत पूछिए,
का जात अरू पात।
रैदास पूत सब प्रभु के,
कोए नहिं जात कुजात॥
रैदास जन्म के कारनै
होत न कोए नीच।
नर कूं नीच करि डारि है,
ओछे करम की कीच॥
संत शिरोमणी रविदास जी का अभियान दो स्तरीय था । एक तो स्वत्व का जागरण करना ताकि समाज परिस्थतियों से भयभीत होकर अपने जड़ों से दूर न हो जाय । इसीलिए वे जन्म और जाति के आधार के बजाय सद्कर्म और आचरण की श्रेष्ठता पर जोर देते थे । उनकी दृष्टि में आजीविका के लिये कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता । छोटा या बड़ा अपने गुण कर्म से होता है । इसलिए वे जूता बनाने का सामान सदैव अपने साथ लेकर चलते थे । उनका दूसरा अभियान था समाज को जाति, वर्ग वर्ण और क्षेत्र से ऊपर उठकर भारत राष्ट्र की पराधीनता से मुक्ति संघर्ष के लिये तैयार करना । इस संबंधी भी उनकी अनेक रचनाएँ थीं । वे कहते थे-
पराधीनता पाप है,
जान लेहु रे मीत।
रैदास दास पराधीन सौं,
कौन करैहै प्रीत॥ ...
सौ बरस लौं जगत मंहि,
जीवत रहि करू काम।
रैदास करम ही धरम हैं,
करम करहु निहकाम॥ ...
उनकी इन पंक्तियों में बहुत स्पष्ट संदेश है कि पराधीनता से मुक्ति संघर्ष के लिये समाज को तैयार कर रहे थे और अपने कर्म को धर्म बताकर स्वत्व और स्वाभिमान से युक्त बने । उनके इन दोनों अभियानों की झलक उनकी देश व्यापी यात्राओं और रचनाओं से मिलती है । भारत का ऐसा कोई प्राँत और क्षेत्र नहीं जहाँ रविदास जी ने यात्रा न की हो । उनकी स्मृतियाँ भारत के प्रत्येक प्राँत और प्रत्येक क्षेत्र में है । उनका पंजाब लोक जीवन में रविदास जी, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान में रैदास, गुजरात और महाराष्ट्र में 'रोहिदास' तथा बंगाल में उन्हें ‘रुइदास’ के नाम का संबोधन है । कुछ पांडुलिपियों में रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास नाम का भी उल्लेख मिलता है। जिस प्रकार उनका नाम पूरे भारत में मिलता है उसी प्रकार उनकी स्मृतियाँ भी भारत के विभिन्न नगरों में हैं। चित्तौड़ में छतरी बनी है और बनारस में पार्क बना है । इसके अतिरिक्त कहीं विद्यालय बने हैं कहीं बस्तियों के नाम भी रविदास हैं। उनके दोहे जन मानस की जुबान पर है । सुप्रसिद्ध संत कबीरदास उनके गुरुभाई और समकालीन थे ।
इस प्रकार अपना पूरा जीवन राष्ट्र जागरण और समाज को समरसता के एक सूत्र में पिरोने में समर्पित करने वाले संत शिरोमणि रविदास ने वाराणसी में 1540 ईस्वी में अपनी देह त्यागी ।
समरसता के इस संकल्प को सार्थक करने के लिये मध्यप्रदेश के सागर नगर में संत रविदास मंदिर निर्माण किया जा रहा है इसके लिये हर घर से एक मुट्ठी मिट्टी और प्रत्येक नदी से जल जल संग्रहीत हुआ है । संत रविदास के इस प्रस्तावित विशाल मंदिर का शिलान्यास 12 अगस्त 2023 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं । इस मंदिर की अनुमानित लागत सौ करोड़ होगी ।