नई दिल्ली l सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी डॉक्टर को लापरवाही के लिए तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब उसके पास अपेक्षित योग्यता और कौशल न हो या उपचार के दौरान उचित विशेषज्ञता का इस्तेमाल करने में विफल हुआ हो। जस्टिस पीएस नरसिम्हा व जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि अगर चिकित्सा पेशेवर से अपेक्षित उचित देखभाल रोगी को दी गई हो, तो यह कार्रवाई योग्य लापरवाही का मामला नहीं होगा।शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में एक डॉक्टर को लापरवाह माना था। शिकायतकर्ता के अनुसार, उनके नाबालिग बेटे की बाईं आंख में जन्मजात विकार का पता चला था, जिसके लिए एक छोटी सी सर्जरी की जरूरत थीा। 1996 में चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में डॉ. नीरज सूद ने यह सर्जरी की थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उनके बेटे में पाई गई शारीरिक विकृति को मामूली ऑपरेशन से ठीक किया जा सकता था। हालांकि, डॉक्टर ने प्रक्रिया में गड़बड़ी की, जिससे सर्जरी के बाद लड़के की हालत बिगड़ गई। इसलिए, शिकायतकर्ता ने डॉ. सूद और पीजीआईएमईआर के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही का आरोप लगाया, जिसे राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 2005 में खारिज कर दिया था।शीर्ष कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ताओं ने डॉ. सूद या पीजीआईएमईआर की ओर से लापरवाही साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं पेश किया है। पीठ ने कहा, सर्जरी के बाद मरीज की हालत में गिरावट का मतलब जरूरी नहीं कि सर्जरी अनुचित या अनुपयुक्त थी। पीठ ने कहा, सर्जरी या ऐसे उपचार के मामले में यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में मरीज की हालत में सुधार हो और सर्जरी मरीज की संतुष्टि के लिए सफल हो। यह बहुत संभव है कि कुछ दुर्लभ मामलों में ऐसी प्रकृति की जटिलताएं उत्पन्न हों, लेकिन यह अपने आप में चिकित्सा विशेषज्ञ की ओर से किसी कार्रवाई योग्य लापरवाही को साबित नहीं करता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि शिकायतकर्ता डॉक्टर या पीजीआई की ओर से किसी लापरवाही को साबित करने में असफल रहे हैं, इसलिए वे किसी भी मुआवजे के हकदार नहीं हैं।