प्रदेश के शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह खुद कहते हैं कि—"मैं व्यक्तिगत रूप से 500 ऐसे शिक्षकों को जानता हूँ, जो स्कूल नहीं जाते। ऐसे शिक्षकों ने किराए पर अन्य लोगों को पढ़ाने के लिए रख लिया है। इनमें से 100 शिक्षक तो मेरे ही जिले के हैं!" तो श्रीमान ! , जब आपको पता है कि शिक्षक स्कूल नहीं जाते, तो कार्रवाई क्यों नहीं करते ? क्यों इन शिक्षकों को बर्खास्त कर जेल नहीं भेजते ?                                     श्रीमान ! यदि आप चाहते हैं कि इस जिले में कोई भी खुशी आत्महत्या न करे, तो-   शिक्षक और बच्चों, पालकों के लिए 'शिक्षा मित्र' हेल्पलाइन नंबर, सिर्फ मन की बात के लिए जारी करें । जो सिर्फ आप देखें और उचित निर्णय लें।

   कुछ शिक्षक ईमानदार हैं, लेकिन  प्राचार्य प्रणाली से लड़ने में असमर्थ हैं। ऐसे में उन्हें एक ऐसे नायक की तलाश है, जो ध्यानपूर्वक उनकी बात दिल से सुने और समाधान करें।बच्चों , पालकों को विश्वास दिलाएं, संवाद बढ़ाएँ, उनकी समस्याएँ जानें और समाधान करें। विद्यालयों के बजाय पंचायत, नगर पालिका और प्रशासनिक कार्यालयों में शिकायत पेटी स्थापित की जाएं। जिसमें पालक और बच्चे शिकायत कर सकें।
ये पेटियाँ केवल आपकी उपस्थिति में ही खोली जाएँ, जिससे गोपनीयता बनी रहे।

यह कदम न केवल शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाएगा बल्कि कई अनमोल जिंदगियों को बचाने में भी सहायक होगा।                                                      दिव्य चिंतन

सड़ी-गली शिक्षा व्यवस्था का शोक पत्र...

ख़ुशी की खुदकुशी, दोषी कौन ?

हरीश मिश्र (रायसेन) 

रंगपंचमी पर दो घटनाएँ हुईं- पहली खुशी की, दूसरी खुदकुशी की। पहली, अंतरिक्ष की कक्षा में नौ महीने बिताने के बाद भारत की बेटी सुनीता पृथ्वी पर लौटी।
दूसरी, रायसेन जिले के  ग्राम गुंदरई की 13 साल की मासूम बेटी ख़ुशी लोधी ने नौवीं की परीक्षा में असफल होने पर आत्महत्या कर ली।

   अंतरिक्ष से पृथ्वी यात्रा खुशी की घटना है, जिस पर हजारों संपादक लिखेंगे, लेकिन मैं खुदकुशी पर लिखकर अपनी कलम का धर्म निभाऊंगा, जिससे कोई और बेटा या बेटी अनंत यात्रा पर ना जाए।

    ख़ुशी बिटिया के घर में होली के रंग अभी फीके भी नहीं पड़े थे कि रंगपंचमी पर परिवार की सारी खुशियां बिखर गईं।
भ्रष्ट शिक्षा व्यवस्था ने गुंजन से पहले ख़ुशी के स्वर घोंट दिए । उसके अंतिम पत्र में वर्तनी की  इतनी अशुद्धियां थीं कि यह खुद हमारी शिक्षा प्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर देती हैं। सवाल यह है कि कक्षा नौवीं तक ख़ुशी पास कैसे होती रही, जबकि उसे  नौवीं कक्षा तक सही ढंग से हिंदी लिखना भी नहीं आया ? हमारी शिक्षा प्रणाली में अंधेरा और दिशाहीनता का बोध हो रहा है।
    श्रीमान कलेक्टर महोदय! आज एक बच्ची ने आत्महत्या की, कल कोई और करेगा , कुछ दिन चर्चा रहेगी ,हम कलम से आंसू बहाते रहेंगे, भ्रष्ट शिक्षा व्यवस्था पर लिखते  रहेंगे और आप टी एल में फटकार और सी एम हेल्पलाइन की समीक्षा करते रहेंगे। हम छापते रहेंगे, आप छपते रहेंगे, इससे व्यवस्था नहीं बदलेगी...! 

    आपने एक पत्रकार के प्रश्न पर 10/02/25 को जिला शिक्षा अधिकारी को अस्थायी शैक्षणिक व्यवस्था तत्काल समाप्त करने संबंधित आदेश दिया। जिला शिक्षा अधिकारी ने अमल किया,  लेकिन शिक्षक विद्यालय वापस नहीं लौटे और आपका आदेश होलिका में जल गया। जिन शिक्षकों को विद्यालय में आकर बच्चों के जीवन में रंग भरना थे, वे कार्यालयों में अस्थाई व्यवस्था आदेश से फाग खेल रहे हैं। ऐसे आदेशों की पुनः समीक्षा करें , या तो आदेश ना दें या आदेश दें तो अमल हो, श्रीमान!

    श्रीमान! यदि व्यवस्था बदलनी है, तो पालकों को, समाज को,  आपको कठोर कदम उठाना पड़ेंगे... भय बिनु होइ न प्रीति...रामचरितमानस की यह नीति बहुचर्चित है और मान्य भी । इसलिए अच्छे शिक्षकों को सुनें, उनसे सुझाव लें, कामचोर! शिक्षकों पर विधि अनुसार दंडात्मक कार्रवाई करें, औंचक निरीक्षण करें, समाचार पत्रों की खबरों पर कार्रवाई करें,
शिक्षकों के छुट्टी के आवेदनों की जांच करें , कोई शिक्षक कितनी छुट्टी ले सकता है, जांच का विषय है। वर्तमान सत्र की, एक-एक स्कूल की उपस्थिति पंजी खोलकर देखिए, भ्रष्टाचार की कालिख पुती मिलेगी। अवकाश के आवेदन फाड़ कर, उपस्थिति के दाग़ मिलेंगे! विद्यालयों में व्यवस्था पंजी नहीं मिलेगी,  विद्यालयों के सी सी टी वी देखिए ! बच्चे विद्यालय में और शिक्षक नदारद मिलेंगे! जिला शिक्षा कार्यालय के आदेशों का अवलोकन करें ! व्यवस्था के नाम पर कामचोर! खलनायक! शिक्षकों को मध्यान्ह भोजन, बी एल ओ, खेलकूद विभाग, राजस्व विभाग में उपकृत करने के अवशेष मिलेंगे ! 

   जिले में कुछ शिक्षकों ने तो जैसे  कामचोरी, मक्कारी  करने के लिए ही जन्म लिया है ।ये शिक्षक ना तो पढ़ाते हैं, ना  ही कोई अन्य कार्य करते हैं, लेकिन हर वर्ष 15 अगस्त 26 जनवरी को ध्वजारोहण पश्चात् धवल वस्त्रधारी , रंग बिरंगी पगड़ीधारी मंत्रीजी से सम्मानित अवश्य होते  हैं।  ऐसे सम्मानित शिक्षक गैंग के नेता बन गए हैं , ना खुद पढ़ाते हैं, ना ही अन्य शिक्षकों को पढ़ाने देते हैं। हां, बिना काम के सम्मान लेने वालों की फौज जरूर खड़ी हो गई है। जिले में जितने गिद्ध नहीं, उससे अधिक सम्मानित शिक्षक हर चौराहे पर मिल जाएंगे।

  इसलिए श्रीमान! यह केवल एक बच्ची की आत्महत्या नहीं, बल्कि  सड़ी-गली, अकर्मण्य और संवेदनहीन शिक्षा व्यवस्था की असफलता का शोक पत्र है। 
     
अभी कक्षा नौवीं और ग्यारहवीं का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ। कुछ विद्यालयों में कुछ विषयों का परिणाम अत्यंत निराशाजनक रहा। प्राचार्यों ने साल भर ना तो पढ़ाई पर और ना ही बच्चों की उपस्थिति पर ध्यान दिया। क्या जुलाई से फरवरी तक शिक्षक बच्चों को इतना भी नहीं सिखा सके कि वे पास हो जाएं ? यदि शिक्षक इतने भी सक्षम नहीं है तो यह उनकी काबिलियत पर प्रश्न चिन्ह है । ऐसे शिक्षकों की समीक्षा की जानी चाहिए और उन पर कार्यवाही तय होना चाहिए।

  जब कोई खुशी परीक्षा में असफल होकर आत्महत्या करती है, तो उसके लिए सरकार और शिक्षा मंत्री, ए.सी. में बैठकर बार-बार शिक्षा नीति बदलने वाले अधिकारी, सत्तर-अस्सी हजार की तनख्वाह लेने वाले  शिक्षक ज़िम्मेदार होते हैं।
 
     आज भी अच्छे  शिक्षक हैं , परंतु संख्या में बहुत कम।दूसरी तरफ कुछ शिक्षक पढ़ाने से ज्यादा सरकारी आयोजनों में ताली बजाते दिखते हैं ।
मंत्री जी के स्वागत में फूल बरसाते हैं, राजनैतिक कार्यक्रमों में दरी उठाते हैं। सोशल मीडिया पर रील बनाते रहते हैं। उनपर कठोर कार्रवाई करें।

 श्रीमान! शिक्षकों की जवाबदेही तय करें, बार बार छुट्टी लेने वाले शिक्षकों के खराब परीक्षा परिणाम की समीक्षा की जाना चाहिए।  दोषी प्राचार्य और शिक्षकों 
के इंक्रिमेंट रोके जाएं ।

   छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम हो, व्यावहारिक शिक्षा पर जोर दिया जाए।
परीक्षा प्रणाली को तनावमुक्त बनाया जाए।
शिक्षा को रोजगारपरक और व्यावहारिक बनाया जाए, ताकि बच्चे सिर्फ रटकर पास न हों, बल्कि कुछ सीखें भी। स्कूलों में कड़े निरीक्षण हों,  प्राचार्य, शिक्षकों का मूल्यांकन कराया जाए।
राजनीति से शिक्षा को अलग किया जाए। शिक्षकों की पदस्थापना  में राजनैतिक हस्तक्षेप बंद हो।

शिक्षकों को सिर्फ पढ़ाने का काम दिया जाए, न कि सरकारी आयोजनों में झंडे उठाने का।

समय कम है, बदलाव जरूरी है!

श्रीमान! अगर आज हम नहीं जागे,अगर शिक्षा के नाम पर चल रही इस लूट को नहीं रोका,अगर शिक्षकों को उनके असली कर्तव्यों की याद नहीं दिलाई,तो कल न जाने कितनी और "ख़ुशियाँ" दम तोड़ देंगी और तब शायद हम सिर्फ मूक दर्शक बने आँसू बहाने के अलावा कुछ भी न कर पाएँ!

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार )