पोषण एवं स्वास्थ्य सुरक्षा में लघु धान्य अनाजों की भूमिका- ध्रुव चंद्र श्रीवास्तव
आज न केवल हमारे देश में बल्कि समूचे विश्व में कृषि उत्पादन एवं कृषि औद्योगिकी से जुड़े लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि कैसे पौष्टिक आहार की मात्रा बढ़ायी जाये। लघु धान्य अनाज एवं उसके उत्पाद इस संदर्भ में अपनी अहम भूमिका निभा सकते है। लघु धान्य अनाजों में मुख्यतः कंगनी, कोदो, कुटकी, चेना, रागी एवं सावा भी शामिल हैं। इन मोटे अनाजों में रागी कर्नाटक प्रान्त, चेना व कुटकी बिहार प्रान्त, कोदी, कुटकी व कंगनी मध्यप्रदेश और सावा उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर मध्यप्रदेश के मैदानी क्षेत्रों तक मुख्य हैं। इन लघु घान्य अनाजों की यह विशेषता है कि ये कम उपजाऊ व ढालू भूमियों में और आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लोगों द्वारा उगाये जाते हैं। इनके उत्पादन में कम उर्वरकों, सिंचाई, कृषि क्रियाओं और कीटों व व्याधियों की रोकथाम हेतु अल्प व्यय एवं देखभाल की आवश्यकता पड़ती है।
वर्तमान में अब यह स्वीकार किया जाने लगा है कि लघु धान्य फसलें स्वास्थ्य की दृष्टि से स्वस्थ खाद्य, उच्च पोषक क्षमता, फाइबर की अधिकता और कार्बोहाइड्रेट के कम अनुपात में उपलब्धता के कारण महत्वपूर्ण हैं। ऐसी स्थिति में इसके परम्परागत स्वरूप को लघु एवं सीमान्त खेती के रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है ताकि स्वस्थ खाद्य के तौर पर इन अनाजों का इस्तेमाल किया जा सके। इनकी खेती के प्रति रूझान बढ़ाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव द्वारा लघु धान्य फसलों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से गत 4 जनवरी 2024 से रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना प्रारंभ की गई है। इस योजना में बाजरा, कोदो, कुटकी, रागी आदि की खेती करने वाले सभी किसानों को शामिल किया जायेगा तथा इस विशिष्ट योजना के अंतर्गत लघु धान्य (मोटे अनाज) की खेती पर किसानों को प्रति किलो 10 रूपये की प्रोत्साहन राशि दी जायेगी जो उनके बैंक खाते में जमा की जायेगी।
लघु धान्य अनाजों में पौष्टिकता इतनी प्रबल होती है कि पौष्टिक दृष्टि से ये लघु धान्य मानव शरीर की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इनसे उन्हें भरपूर प्रोटीन, विटामिन, वसा और खनिज पदार्थ तथा ऊर्जा आदि प्राप्त होते है। किसी-किसी लघु धान्य अनाज में उपरोक्त तत्व गेंहू और चांवल जैसे खाद्यानों से भी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। गरीबी रेखा के आस-पास जीवन यापन करने वालों को ये लघु धान्य अनाज भी भरपूर मात्रा मे नहीं मिलते, अतः अब यह प्रयास किये जा रहे हैं कि इन मोटे अनाजों की उन्नत किस्मों को विकसित करके इनके बीजों को आसानी से किसानों को उपलब्ध कराया जाये। लघु धान्य अनाज कहलाने वाले खाद्यान्न पौष्टिकता की दृष्टि से कितने प्रबल है, इसकी जानकारी निम्न सारणी में तुलनात्मक रूप दी जा रही है ताकि इनकी पौष्टिकता के महत्व को समझा जा सके। इसका प्रयोग भोजन में करने से हृदयरोग, मधुमेह एवं अल्सर की बीमारियों से बचाव के लिए अति गुणकारी पाया गया है।
खाद्यान्न एवं लघु धान्य अनाजों की पौष्टिकता का तुलनात्मक अध्ययन :-
खाद्यान्न |
प्रोटीन (ग्राम) |
काब्रोहाईड्रेट (ग्राम) |
वसा (ग्राम) |
फाइबर |
खनिज लवण (ग्राम) |
केल्शियम (मि.ग्रा.) |
फास्फोरस (मि.ग्रा.) |
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धान्य फसलें गेहू धान जौ मक्का |
11.80 06.80 11.50 11.10 |
71.20 78.20 69.60 66.20 |
1.50 0.50 1.30 3.60 |
1.20 0.20 3.90 2.70 |
1.50 0.60 1.20 1.50 |
41.00 10.00 26.00 20.00 |
306.00 160.00 215.00 348.00 |
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लघु धान्य अनाज रागी चीना कगनी कोदो कुटकी सावा |
07.30 12.50 12.30 8.30 8.70 11.60 |
72.00 70.40 60.90 65.90 75.70 74.30 |
1.30 1.10 4.30 1.40 5.30 5.80 |
3.60 2.20 8.00 9.00 8.60 स्त्रोत : - भारतीय खाद्यानों का पोषक मान, 1991, एन.आई.एन., हैदराबाद, भारत ।
लघु धान्य अनाजों की मुख्य विशेषतायें :- 1. लघु धान्य अनाजों में एमीनो अम्ल संतुलित मात्रा में पाया जाता है तथा मेथोइओनिन, सिसटिन एवं लाइसिन एमिनो अम्ल के मुख्य स्त्रोत है । 2. लघु धान्य अनाजों का भंडारण अन्य अनाजों की अपेक्षा अधिक समय तक किया जा सकता है क्योंकि भंडारण के दौरान इसमें कीट एवं रोग भी कम लगते है ।
3. इसमें थाइमिन, राइबोफ्लोबिन, कोलिन एवं नियासिन विटामिन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। 4. रागी कैल्शियम का मुख्य स्त्रोत है। यह मुख्य रूप से कैल्शियमयुक्त पौष्टिक आहार में प्रयोग किया जाता है, जो कि गर्भवती महिलाओं व छोटे बच्चों को विशिष्ट आहार के रूप में दिया जा सकता है । 5. लघु धान्य अनाज मधुमेह की बीमारी की रोकथाम में भी काफी उपयुक्त पाये गये हैं, क्योंकि ये मनुष्य के खून में ग्लुकोज को बहुत धीमे-धीमे छोड़ते है जिससे शरीर में शक्कर की मात्रा संतुलित रहती है ।
प्रसंस्करण एवं उत्पाद विकास में मूल्य अभिवृद्धि प्रणाली को शामिल करके लघु धान्य अनाजों को लोकप्रिय बनाने का एक मुख्य बिन्दु है । ग्राम स्तर पर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से छोटी मिलें स्थापित करके मूल्य अभिवृद्धि उत्पाद जैसे रागी पौष्टिक मठरी, बाजरा बेसन लड्डू, हल्के खाद्य पदार्थ, बच्चों हेतु पोषण आहार तथा बिस्कुट, ब्रेड, स्नैक्स आदि के उत्पादन का कार्य अच्छी तरह से किया जा सकता है । |