बुन्‍देलखण्‍ड में दमोह जिला दलहन उत्‍पादन में अग्रणी जिला है। रबी मौसम में चना की फसल के साथ तेवड़ा के पौधे उगना एक गंभीर समस्‍या है। विगत वर्षो में चना उपार्जन में तेवड़ा (खेसरी) के दाने से मिश्रण की समस्‍या उत्‍पन्‍न हुई है।

तेवड़ा क्‍या है

            तेवड़ा चने एवं अन्‍य रबी फसलों में उगने वाला एक प्रकार का खरपतवार है, जिसमें नीले रंग  के फूल आते है तथा फलियॉं चपटी रहती है। जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है।

तेवड़ा से नुकसान

            तेवड़ा के दाने में एक जहरीला रसायन पाया जाता है, जिसे लेथायरिज्‍म कहते है, तेवड़ा में न्‍यूरोलेथायरिज्‍म, ऑस्टियो लेथायरिज्‍म एवं एन्जियो लेथायरिज्‍म नामक तीन प्रकार के लेथायरिज्‍म पाये जाते है, इसके सेवन से मनुष्‍य के शरीर में कमजोरी, तंत्रिका तंत्र प्रभावित, हाथ पैर सुन्‍न तथा पैरों में पेरालिसि‍स (लकवा) जैसी गंभीर समस्‍यायें हो सकती है।

खड़ी फसल में खेत से उखाड़कर अलग करना

            तेवड़ा के पौधे चने के पौधों से बिल्‍कुल भिन्‍न होते है, जिन्‍हें पहचानकर आसानी से अलग किया जा सकता है। एक मजदूर एक दिन में लगभग एक से दो एकड़ खेत में तेवड़ा के पौधों को आसानी से निकाल सकता है।