मुंबई l निर्देशक षणमुगम शंकर यानी एस शंकर की इस बात के लिए तारीफ तो जरूर होनी चाहिए कि उनके तकनीकी ज्ञान से भारतीय सिनेमा ने तमाम सारी नई बातें सीखी हैं। ऑस्ट्रेलिया में अपनी फिल्म ‘इंडियन’ (1996) लेकर गए शंकर ने इसी फिल्म में लोगों को ये भी बताया था कि आखिर टेलीफोन धुन में कोई लड़की कैसे हंस सकती है? इमोजी तो क्या तब तक तो मोबाइल फोन ही नहीं आए थे। शंकर की फिल्मों में सियासी और सरकारी भ्रष्टाचार अहम मुद्दा रहा है। फिल्म ‘इंडियन’ की जो थीम साल 1996 में थी, उसी थीम पर उनकी साल 2025 में आई फिल्म ‘गेम चेंजर’भी आधारित है। बस वह तमिल थी, ये तेलुगु में हैं। शंकर के करियर कीपहली तेलुगु फिल्म। ये फिल्म दर्शकों से सवाल करती है। सरकार को कंपलसरी वोटिंग का विचार देती है और देश को बताती है क्या होता है, गेम चेंजर?फिल्म ‘गेम चेंजर’ की कहानी बहुत खास नहीं है। ये बस इतना बताती है कि एक सरकारी अधिकारी चाहे तो पूरे सिस्टम को बदल सकता है। खासतौर से एक आईएएस अधिकारी। कम लोगों को ही पता होगा कि किसी भी जिले में सेना बुलाने का अधिकार सिर्फ वहां के जिलाधिकारी को होता है और वह चाहे तो राज्य सरकार के किसी भी मौखिक आदेश को मानने से इनकार कर सकता है। राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर काम करने वाले जिलाधिकारी की निष्ठा संविधान में होती है और यही शपथ हर आईएएस लेता है। कहानी यहां उत्तर प्रदेश के गुटखा माफिया को तबाह करने वाले आईपीएस राम के आईएएस बनकर नई पोस्टिंग पर आंध्र प्रदेश जाने की यात्रा से शुरू होती है। खुद पर जानलेवा हमला करने वाले जिन गुंडों की वह फिल्म के पहले सीन में जान बचाता है, उन्हीं गुंडों की जरूरत उसे बतौर मुख्य निर्वाचन अधिकारी फिल्म के क्लाइमेक्स में पड़ जाती है।