गुग्गुल की खेती किसानों के लिए वरदान
मुरैना l गुग्गल एक वृक्ष है। इससे प्राप्त राल जैसे पदार्थ को ’गुग्गल’ गोंद कहा जाता है। भारत में इस जाति के दो प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं। एक को कॉमिफ़ोरा मुकुल तथा दूसरे को कौमीफोरा बाईटी कहते हैं। हमारे वहां कौमीफोरा बाईटी प्रजाति की गुग्गल है। गुग्गल एक छोटा पेड हैं। जिसके पत्ते छोटे और एकान्तर सरल होते हैं। यह सिर्फ वर्षा ऋतु में ही वृद्धि करता है तथा इसी समय इस पर पत्ते दिखाई देते हैं। शेष समय यानि सर्दी तथा गर्मी के मौसम में इसकी वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है तथा पर्णहीन हो जाता है। सामान्यतः गुग्गल का पेड 3-4 मीटर ऊंचा होता है। इसके तने से सफेद रंग का दूध निकलता है, जो इसका का उपयोगी भाग है। प्राकृतिक रूप से गुग्गल भारत के मध्यप्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान तथा गुजरात राज्यों में उगता है। भारत में गुग्गल विलुप्तावस्था के कगार पर आ गया है। बडे क्षेत्रों में इसकी खेती करने की जरूरत है। भारत में गुग्गल की मांग अधिक तथा उत्पादन कम होने के कारण अफगानिस्तान व पाकिस्तान से इसका आयात किया जाता है। गूगल गोंद का उपयोग 60 बीमारियों में काम आता है तथा गूगल के वृक्ष से निकलने वाला गोंद ही गूगल नाम से प्रसिद्ध है। इस गूगल से ही महायोगराज गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुलु, चंद्रप्रभा वटी आदि योग बनाए जाते हैं। इसके अलावा त्रिफला गूगल, गोक्षरादि गूगल, सिंहनाद गूगल और चंद्रप्रभा गूगल आदि योगों में भी यह प्रमुख द्रव्य प्रयुक्त होता है।