गुरु पं बृजभूषण दुबे जी को 
गुरु पूर्णिमा पर शत् शत् नमन् 

दिव्य चिंतन (हरीश मिश्र)

     हमेशा खरी बात हिम्मत और सलीके से रखने वाले बौद्धिक क्षमता एवं लेखन शक्ति से संपन्न... मेरे गुरु... वरिष्ठ अधिवक्ता...स्व. पं बृजभूषण दुबे जी को गुरु पूर्णिमा पर शत् शत् नमन्। उनकी रचना उनके विरले स्वभाव को अभिव्यक्त करती है...

मैं क्यों ना बोलूं खरी-खरी
तुम क्यों ना बोलते खरी-खरी
क्यों रहे आत्मा डरी-डरी
किससे तुम को डर लगता है
किस कारण से दिल डरता है
क्यों बर्फ के माफिक गलता है
क्यों दिल ही दिल में जलता है
क्यों दुष्टों  को करता बरी-बरी
क्यों नहीं बोलता खरी-खरी ?

   मेरे गुरु विरले स्वभाव के, फक्कड़ व्यक्ति थे । दूसरों के प्रति उदार, सरल लेकिन अपने लिए कठोर। यदि उनकी जीवन यात्रा पर दृष्टि डालें तो उनका  जीवन उनके सिद्धांत.. उनकी निष्ठा... कठोर तपस्या उनकी खरी-खरी अभिव्यक्ति का माध्यम था ।

    मैंने उनके बारे में परम पूज्य पिताजी स्व पंडित रमाशंकर मिश्र से बचपन में बहुत से किस्से सुने थे। 1998 में उन्होंने एक  परिवाद लड़ा। तब मैं उनके संपर्क में आया और उन जैसे गुरु का मुझे सानिध्य मिला । वह मेरे जीवन के पथ दृष्टा बनें। उन्होंने मेरे जैसे मूक व्यक्ति को जो कभी भी माटी में विलीन हो सकता था । उसे दिव्य घोष करने की प्रेरणा दी....वह कहते...

इस दुनिया से डरना मत
डर के मारे मरना मत ।

    उनके विचारों से प्रेरित होकर डर को मैंने अपनी ताकत बनाया । एक बार उन्होंने मुझसे कहा !

जीना है तो मरना सीखो 
मर-मर कर कुछ करना सीखो
मर कर भी कुछ कर जाओगे सच्चा जीवन जी जाओगे

   वह मुझसे कहते हैं । जो भी होगा... जो करना होगा... वह वक्त करेगा...  जब तक सांसें हैं... तुम इस मूक माटी की आवाज बनो.... ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के साथ दिव्य घोष करो। क्योंकि

दुनिया वक्त की कहानी है ।
यह सब कुछ वक्त की निशानी है।

वक्त ने कितनों को बढ़ाया है।
वक्त ने कितनों को उड़ाया है।

वक्त आया हो तो काम होता है।
वक्त ना हो तो नाकाम होता है।

वक्त ने हर वक्त देखा है।
वक्त पर हर पल का लेखा है।

   मैं जब भी परेशान होता था.... तब बेखौफ... बेधड़क...बेबाक उनके पास जाता था ...वे आराम से बैठाकर... धीरज से मुझे सुनते ...सलाह देते ...समर्थन देते...मैं निडर होकर निःसंकोच अपने मन की बात कहता...वे मेरा विश्वास नहीं तोड़ते ..मेरा साथ नहीं छोड़ते... मेरा आत्मविश्वास जागृत करते... मुझे आशा देते.. मुझे मेरी ताकत याद दिलाते .... कहते थे... तुम कर सकते हो...तुम लड़ सकते हो ... तुम जीतोगे...*

मेरे गुरुवर को गुरु पूर्णिमा पर मेरा प्रणाम!