सब चिंतनीय है महोदय ! जरा़ विचारिये तो हुजूर !!
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दिव्य चिंतन
डॉक्टरों और सी एम एच ओ के बीच कलह
जिला चिकित्सालय में ला-इलाज वायरस का संक्रमण
(हरीश मिश्र)
कल अंतर्राष्ट्रीय खेल दिवस पर जिला चिकित्सालय, रायसेन में डॉक्टरों और सी एम एच ओ ने खेल भावना से तू-तू, मैं-मैं, आरोप-प्रत्यारोप , भड़ास निकाल कर एक-दूसरे का इलाज किया ।
इस तू-तू , मैं-मैं के भव्य आयोजन में कई मोड़ आए, जब अन्य डॉक्टरों ने रोका-भी-टोका भी।
इस मैच का वीडियो दर्शक दीर्घा में बैठे कुछ पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर वायरल कर खूब आनंद लिया।
डॉक्टरों का आरोप है " इस ला-इलाज वायरस का संक्रमण पूरे जिले में तेजी से फैल रहा है। डॉक्टरों ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पर ऊंगली दिखाने, अपने अधिनस्थों पर दबाव बनाने, भ्रष्टाचार करने, लिफाफे लेने, जूनियर हो कर, पैसे देकर सी एम एच ओ बनने के गंभीर आरोप लगाए हैं । "
विधि अनुसार वरिष्ठ डॉक्टर को सी एम एच ओ का दायित्व मिलना चाहिए । लेकिन प्रदेश में सभी कार्य विधि अनुसार ही नहीं होते। कुछ काम जुगाड़, न्यौछावर देकर भी होते हैं। डॉक्टरों के आरोप गंभीर हैं, जिस की जांच होनी चाहिए कि नियुक्त में पैसे किसने लिए और उंगली दिखाने वाले हाथ को किसका संरक्षण प्राप्त है।
दूसरी तरफ सी एम एच ओ का आरोप है " मकड़ी के जाले सिर्फ चिकित्सालय में ही नहीं, कुछ डॉक्टरों के मस्तिष्क में भी लग गए हैं। जाले हटाने के लिए मस्तिष्क भेदन अर्थात दूरबीन पद्धति से ही आपरेशन किया जाएगा। रही बात उंगली दिखाने की, हमने कोई उंगली नहीं दिखाई, बस अधिक से अधिक मतदान करने की अपील की है, जिसका कुछ डॉक्टरों ने बात का बतंगड़ बना दिया।"
सी एम एच ओ ने भी वायरल वीडियो में डॉक्टरों पर मरीजों से पैसे लेने और प्रायवेट अस्पताल में भर्ती कर, पैसे कमाने का आरोप लगाया। यह आरोप सच भी है। पैसा कमाने की दौड़ में अंधे होकर डॉक्टर लूट-पाट में लगे हैं।
चिकित्सा विभाग से वायरस हटाने के लिए कुछ डॉक्टर,टेक्नीशियन गुप्त रुप से शोध कर रहे हैं और चिमटे से वाइरस पकड़ने की योजना बना रहे हैं। जबकि वायरस का उपचार वैक्सीन है, चिमटा नहीं।
डॉक्टर और सी एम एच ओ की लड़ाई से समझदार डॉक्टरों ने दूरी बना ली है, दूर से परम आनंद ले रहे हैं ना इस पाले में, ना उस पाले में। उनका कहना है
" कपट, दम्भ और माया से निर्मित वायरस को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है । मकड़ी के जाले छू तक नहीं सकते। नेता जिस पर कृपा कर देते हैं , उस पर सभी की कृपा अपने आप होने लगती है । इसलिए दो गज की दूरी ही उपचार है।"
आम आदमी यदि किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होता है तो इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाता है। लेकिन डॉक्टर ही वायरस संक्रमित हों , तो मरीज कहां जाए। वायरस हटेगा मकड़ी के जाले जन-चर्चा का विषय है।
ज़रा विचारिये तो हुज़ूर !!
सड़े सिस्टम को कठोर सर्जरी की ज़रूरत है । अगर सी एम एच ओ कहते हैं कि महिला चिकित्सक अस्पताल में नहीं बैठते हैं और निजी अस्पतालों में मरीज भेजकर इलाज करवाते हैं ,तो उन्हें सबसे पहले उंगली आर एम ओ और सिविल सर्जन को दिखानी थी कि तुम आंख पर पट्टी बांधे क्यों बैठे हो ?
अगर वार्ड में जाले लगे हैं तो स्टीवर्ड और वार्ड प्रभारी के अलावा आर एम ओ अब तक किस राग में फाग गा रहे थे ।
मरीजों को निजी अस्पतालों की ऑपरेशन टेबल पर लिटाकर डॉक्टर सर्जरी कर रहे तो, अस्पतालों की वैधता की जांच कौन कर रहा है ? उनकी स्टाफ सूची ,सर्जन ,निश्चेतना विशेषज्ञ सहित दक्ष मेट्रन और स्टाफ नर्स की जांच कब और किसने की है ?
अंगुली तो उठेगी और इन स्वयम्भू भ्रष्ट मठाधीशों की सर्जरी भी हो और अल्सर काटे जाएं ।
मकड़जाल को समूल उखाड़ फेंका जाए ,तभी कुछ उम्मीद है ,वरना अंगुली उठेगी ,टूटेगी फिर कमर में हाथ डालकर सब हिचकोले भरेंगे और सिस्टम से भरोसा आम आदमी का टूटेगा ।
सब चिंतनीय है, महोदय !
ज़रा विचारिये तो हुज़ूर !!
लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )