भोपाल l किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा कृषकों में जागरूकता बनायें रखने के लिए बताया गया कि फसल कटाई के पश्चात इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा अवशेष के रूप में अनुपयोगी रह जाता है, जो नवकरणीय ऊर्जा का स्त्रोत होता है। इस तरह के फसल अवशेषों की मात्रा लगभग 62 करोड़ टन है। इसका आधा हिस्सा घरों एवं झोपड़ियों की छत निर्माण, पशु आहार, ईंधन एवं पैकिंग के लिए उपयोग में लाया जाता है। आज कृषि के विकसित राज्यों में सिर्फ 10 प्रतिशत किसान ही अवशेषों का प्रबंधन कर रहे हैं। तकनीकों की जानकारी के अभाव एवं कुछ किसान जानकारी होते हुये भी अनभिज्ञ बनकर फसलों अवशेषों को जला रहे हैं साथ ही कटाई के उपरांत खेतों में पड़े दाने, गेहूं, चावल जैसी फसलों के डंठल या नरवाई जला देते हैं, जिससे नरवाई ही नहीं जलती बल्कि भूमि के अंदर उपस्थित सभी सूक्ष्म जीव तापक्रम बढ़ने से नष्ट हो जाते हैं। फसल अवशेषों को जलाना न सिर्फ किसानों के लिये हानिकारक है अपितु म.प्र. शासन पर्यावरण विभाग मंत्रालय द्वारा 05 मार्च 2017 को नोटिफिकेशन में नरवाई जलाने पर दो एकड़ से कम में 2500 रूपए, दो एकड़ से पांच एकड़ तक 5000 हजार रूपयें एवं पांच एकड़ से अधिक पर नरवाई जलाने में 15 हजार रूपयें का जुर्माना लगाने का प्रावधान भी है।

श्रीमती सुमन ने बताया कि नरवाई को जलाने से प्रकृति, पर्यावरण, भूमि का प्रदूषण तो होता ही है साथ ही विभिन्न प्रकार की समस्याऐ उत्पन्न होती है जैसे मिट्टी की उर्वराशक्ति नष्ट होना, भूमि सख्त होना, भूमि की जल धारण क्षमता में कमी, मिट्टी में कार्बन की मात्रा कम होने के साथ-साथ धरती का तापक्रम बढ़ना, भूसे की कमी, जन-धन जंगलों के नष्ट होना के खतरा बना रहता है। उप संचालक कृषि श्रीमती सुमन प्रसाद ने किसान भाइयों से अपील की है कि उपलब्ध फसल अवशेषों को जलाने की बजायें वापस भूमि में मिला दे ताकि निम्न लाभ प्राप्त हो सके फसल अवशेष खेतों में सढ़कर मृदा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि करते हैं। सर्वविदित है कि कार्बनिक पदार्थ ही एक मात्र ऐसा स्त्रोत है जिसके द्वारा मृदा में उपस्थित विभिन्न पोषक तत्व फसलों को उपलब्ध हो पाते हैं। कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ने से मृदा सतह की कठोरता कम करता है। जल धारण क्षमता एवं मृदा वातन में वृद्धि होती है। मृदा के रासायनिक गुण जैसे उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा, मृदा की विद्युत चालकता एवं मृदा पी.एच. में सुधार होता है। किसान नरवाई का उपयोग खाद एवं भूसा बनाने में करें। जिसके लिये निम्न कार्य करना आवश्यक है। भूसे डंठल को खेत में ही एम.बी. प्लाऊ से गहरी जुताई कर इसको मिट्टी में दबाये ताकि इससे खाद बन सके।

उन्होंने बताया कि किसान भाई भूसा मशीन (स्ट्रारीपर) का उपयोग कर सकते है। विशेषक कर कम्बाईन हार्वेस्टर की कटाई के पश्चात गेहूं व धान की फसल में जो लंबे 8-12 इंच भूसे के डंठल खड़े रहते हैं, उसे स्ट्रारी पर मशीन से काट कर भूसा बनाया जाता है। स्ट्रारीपर टैक्टर से चलने वाला यंत्र है इसके द्वारा काटे गयें डंटल भूसे के रूप में यंत्र के पीछे लगी हुई बंद ट्राली में एकत्रित हो जाते है। रिपर चलाने के पश्चात रोटाबेटर चलाकर जुताई करे जिससे जमीन में एकरूपता होती है, भूमि भुर-भुरी होती है, जिससे जुताई करने में आसानी होती है एवं वायु का संचार होता है तथा वर्षा का पानी अधिक से अधिक संचय होता है।