मुरैना /हमे ग्रामीण समस्याओं को चिन्हित करने व उसके समाधान के लिए समाज को ही जिम्मेदारी देनी होगी। हमे ग्राम में छोटे-छोटे कार्यों के माध्यम से स्वाबलंबन की दिशा में प्रयास प्रारंभ करने होंगे। समाज में स्थायी परिवर्तन जन भागीदारी के कार्यों से ही आएगा। हमें वर्षा जल के संरक्षण एवं जैविक खेती के लिए कार्ययोजना बनाकर कार्य करना होगा। हमें खेती के क्षेत्र में नवाचार करने होंगे। यह बात शासकीय महाविद्यालय जौरा में संगोष्ठी के दौरान जन अभियान परिषद जौरा के ब्लॉक समन्वयक श्री बी.डी. शर्मा ने कही। कार्यक्रम में श्री विवेक राजपूत, नवांकुर संस्था से श्री अलकेश राठौर, परामर्शदाता श्री प्रशांत शर्मा, शिवानी शर्मा, विनोद शर्मा, जया बागड़े, श्रीकुमार शर्मा आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम में कृषि विभाग से श्री पवन शर्मा ने केंचुए खाद के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें नत्रजन, स्फुर, पोटाश के साथ अति आवश्यक सूक्ष्म कैल्श्यिम, मैग्नीशियम, तांबा, लोहा, जस्ता और मोलिवड्नम तथा बहुत अधिक मात्रा में जैविक कार्बन पाया जाता है। केंचुएँ के खाद का उपयोग भूमि, पर्यावरण एवं अधिक उत्पादन की दृष्टि से लाभदायी है। उन्होंने कहा कि हरी खाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति जीवाणुओं की मात्रा एवं क्रियाशीलता पर निर्भर रहती है, क्योंकि बहुत सी रासायनिक क्रियाओं के लिए सूक्ष्म जीवाणुओं की आवश्यकता रहती है। जीवित व सक्रिय मिट्टी वही कहलाती है, जिसमें अधिक से अधिक जीवांश हो। जीवाणुओं का भोजन प्रायः कार्बनिक पदार्थ ही होते है। इनकी अधिकता से मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। केवल जीवाणुओं से मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने की क्रियाओं में हरी खाद प्रमुख है। इस क्रिया में वानस्पतिक सामग्री को अधिकांशतः हरे दलहनी पौधों को उसी खेत में उगाकर जुताई कर मिट्टी में मिला देते है। हरी खाद हेतु मुख्य रूप से सन, ढेंचा, लाबिया, उड्द, मूंग आदि फसलों का उपयोग किया जाता है।