कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ में कृषकों को उड़द फसल की उन्नत काश्त पर दिया गया प्रशिक्षण

कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. किरार, वैज्ञानिक डॉ. आर.के. प्रजापति एवं डॉ. एस.के. जाटव द्वारा आदर्श ग्राम दलहन योजनान्तर्गत उड़द की उन्नत खेती पर कुर्राई गांव के 105 किसानों को आज के.वी.के. में प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण में डॉ. बी.एस. किरार द्वारा बताया गया कि उड़द फसल हेतु खेत का चयन, बीजोपचार (कार्बोक्सिन $ थायरम), उन्नत किस्म का चयन, उचित बीज दर (8 कि.ग्रा. प्रति एकड़), मशीन से बुवाई, मिट्टी परीक्षण उपरांत संतुलित उर्वरक का उर्वरक का प्रयोग (यूरिया - 17 कि.ग्रा., सिंगल सुपर फास्फेट -125 कि.ग्रा., म्यूरेट ऑफ पोटाश दृ 10-12 कि.ग्रा. प्रति एकड़) सभी उर्वरक बुवाई के समय आधार रूप में देना चाहिए। फसल में नींदा एक प्रमुख समस्या है, इसके नियंत्रण हेतु 15 से 25 दिन में निंदाई-गुड़ाई करें या शाकनाशी दवा का 200 ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
वैज्ञानिक डॉ. आर.के. प्रजापति ने उड़द फसल में लगने वाले प्रमुख कीट जैसे - सफेद मक्खी, माहू, इल्ली, सेमीलूपर, आदि कीटों की पहचान एवं प्रभावी नियंत्रण के बारे में विस्तार से बताया। साथ ही फसल में लगने वाले रोग जैसे -पीला मोजेक, सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा, एन्थ्रेक्नोज (तना झुलसा), भभूतिया, आदि रोगों की पहचान एवं उचित प्रबंधन के बारे में बताया। वैज्ञानिक डॉ. एस.के. जाटव द्वारा उन्नत किस्में जैसे -इंदिरा उड़द-1, आई.पी.यू. 13-1, आई.पी.यू. 10-26, कोटा उड़द-3, आदि किस्मों एवं उनकी विशेषताओं से अवगत कराया गया और किसानों को बीज एवं अनाज का अंतर समझाया।
बीजों के प्रकार जैसे -नाभिकीय, प्रजनक, आधार एवं प्रमाणित बीजों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि बीज को तीन साल बाद बदल देना चाहिए। उन्नत बीज के उत्पादन हेतु फसल की विशेष देखभाल करनी चाहिए और फसल से अवांछनीय पौधों को निकाल देना चाहिए जिससे बीज में दूसरे बीज के मिश्रण की समस्या नहीं रहेगी और अच्छा बीज तैयार होगा, जिसे आने वाली वर्ष में दूसरे किसानों को बीज के रूप में बिक्री भी कर सकते हैं।