दिव्य चिंतन

झेलम के आंसू और वीरों का बलिदान !

बदला मांगें हिन्दुस्तान !

हरीश मिश्र 

कश्यप ऋषि की धरा में ,  झेलम में आंसुओं की बाढ़ आ गई ‌। माननीय ! मद मस्त हैं, घर उजड़ रहे हैं। ठंडी वादी में सैनिकों के लहू से फाग खेला जा रहा है। बर्फ़ के अंदर दहशतगर्दी की आग छुपी है।

माननीय! कुरान की आयतें और गीता के श्लोकों से दहशतगर्दी नहीं रुकेगी।  अरबों रुपए खर्च कर के 
जो रॉफेल खरीदा है वो प्रदर्शनी लगाने , गणतंत्र दिवस पर प्रदर्शन करने के लिए नहीं खरीदा।

यह सत्य है कि सेना का मनोबल बनाएं रखने के लिए दिल्ली में बैठी सरकार को बयान देना पड़ते हैं किंतु बयान इतने अविश्वसनीय नहीं होना चाहिए की सेना और जनता का विश्वास ही  सरकार पर से उठ  जाए।

कब तक कफ़न ओढ़ेंगे, भारत मां के वीर !
कहे तिरंगा 543 को भिजवा दो कश्मीर!