घर से बाहर निकलते ही चारों तरफ जगमगाते हुए घरों की बालकनी ,सजी हुई दुकानें देखकर दिल बहुत खुश हो जाता है और मेरा दिल  कहता है कि लो आ गया तुम्हारा पसंदीदा त्यौहार "दिवाली "मना लो जी भर कर अपने" दिवाली" को । दिवाली त्यौहार जो हर घर में खुशियों की सौगात लेकर आता है ,चाहे बच्चे हों या बूढ़े सभी के जीवन को यह खुशियों से भर देता है तभी तो सब दिवाली का इंतजार करते हैं ।
चाहे कितनी ही पीढ़ियां बीत गई हो पर लगता है ,मेरी  तरह ही हर बच्चे का पसंदीदा त्यौहार दिवाली ही है । वो पापा - मम्मी के साथ मिठाइयां बनवाना ,भाई बहनों के साथ लड़ना - झगड़ना, घरों को सजाना -  सवारना,पापा जी को पटाखे के लिए मनाना शायद यही खास है इस त्यौहार में जो अपनों को करीब ले आता है । जीवन में खुशियों की सौगात लेकर आना ही दिवाली को खास बनाता है
दिवाली पर अपनों के घरों में खुशियों की मिठाई  और प्रेम के दीपक को बांटना मेरा बचपन से पसंदीदा कार्य रहा है । हर साल की तरह इस साल भी    मिठाई बांटने का सिलसिला 10 दिन पहले से ही कर रही हूं ,जब मैं मिठाई बांटने गई तो ,रेशम के घर के बगल वाली घर के बाहर ,एक छोटा सा बच्चा अपने 10 साल की बहन के साथ उदास नजरों से अपने गली के पटाखे चलाने वाले बच्चों को देख रहा था ,कभी उसकी निगाहें पटाखे की आवाज सुनकर हस्ती तो कभी अपनी बहन का चेहरा देखकर उदासीन हो जाता, उस वक्त उसकी 10 साल की बहन उसे मां की तरह हिम्मत दिखाती हुई नजरों से सांत्वना देती पर वो 10 साल की बच्ची की आंखें नम होने से खुद को नहीं रोक पा रही थी। बच्चा पटाखे के लिए जिद करता पर बहन का साथ पाकर अपने आप को संभाल भी ले रहा था , मैं वहीं खड़ी होकर सब देख रही थी और न जाने क्यों मेरी आंखें भी अपने आप नम हो गई  थी। 
मैं रेशम से पूछी यह बच्ची और बच्चा कौन है ,तब मुझे रेशम ने बताया कि इसके पापा अभी 5 महीने पहले ही उनका एक्सीडेंट होने के कारण शांत हो गए हैं।
ये लोग यहां किराए से रहने आएं हैं उनकी मम्मी अभी छोटा-मोटा काम चालू की है पर आमदनी उतनी नहीं हो पाती है कि परिवार अच्छे से चल पाए ।
एक बीमा सलाहकार  होने के नाते मैं उनके घर गई यह सोचकर कि कोई पॉलिसी होगी तो उसकी सर्विस दे दूंगी पर जब पॉलिसी के बारे में जिक्र की तो बच्चों की मम्मी जोर- जोर से रोने लगीं वो मेरी ओर देख नहीं पा रही थीं, मैंने बहुत  समझाया बुझाया तब जाकर बताना चालू की बोलीं,दीदी आपकी तरह ही एक LIC वाले भैया पिछले दीपावली पर बीमा करने आए थे मैंने और मेरे पति दोनों ने समझा भी था पर हम दोनों ने उन्हें "बाद में देखेंगे "कहकर उन्हें मना कर दिया (वह महिला फिर से जोर-जोर से रोने लगी) 
मैं भी अपनी आंखें बंद करके यह सोचने लगी कि तुम ही नहीं ज्यादातर लोग यही कहते हैं मेरी आंखों में न जाने कितने लोगों की तस्वीर है जिन्होंने बीमा लेने से मना कर दिया है । वह महिला बार-बार पछतावे के साथ बोलती जा रही थी और अपने भविष्य की जिम्मेदारियों को गिनाते जा रही थी , वो सारी जिम्मेदारियों को बीमा सलाहकार ने भी उस समय बताया होगा पर उस समय उस महिला की दृष्टि ने जिम्मेदारियों को अनदेखा कर दिया था ।
यही होता है हमारे साथ भी  जब मैं "सुरक्षा की दीपक" के बारे में बताती हूं तो लोग यह समझते हैं कि बीमा बेचने आईं हैं ,मृत्यु के डर को दिखाकर अपना बीमा बेचने की कोशिश कर रही है ,पर बीमा सलाहकार मृत्यु नहीं आपकी खुशियों को संजोगने का कार्य करता है , वो बच्चों के पिता तो चले गए पर  परिवार का आर्थिक जिम्मेदारी , बच्चों की अच्छी शिक्षा की जिम्मेदारी सब कुछ वह अधूरा छोड़कर चले गए
दोस्तों एक बीमा सलाहकार होने के नाते मैं यह कहना चाहती हूं "एक दिया सुरक्षा की" अपने घर में ले कर आएं,यह  सुरक्षा का दिया आपका प्रतिबिंब होगा , यह सुरक्षा का दिया आपकी भविष्य की जिम्मेदारियों को अपने कंधे पर उठेगा ।तो इस दिवाली खरीदें अपनों के लिए एक "सुरक्षा का दिया" और मनाए अपने परिवार के साथ सुरक्षा वाली दिवाली जो हो "जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी"