(डॉ अजय खेमरिया)

दिल्ली का जनादेश देश की संसदीय राजनीति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सन्देश दे रहा है।पहला तो यह कि देश की चुनावी राजनीति  वैचारिक शून्यता के आधार पर दीर्धकाल के लिए टिकाऊ नही रहने वाली है।दूसरा केवल विरोध के लिए विरोध से विपक्षी राजनीति प्रतिस्पर्धा में नही टिकने वाली है।तीसरा पे रोल पर अपनी पत्रकारिता और वैचारिक दुकान चलाने वालों के भरोसे जो भी दल चुनावी राजनीति करेगा उसका हश्र आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की गति पाता रहेगा।
इस चुनाव में व्यक्तिगत अहंकार और तानाशाही की भी शिकस्त हुई है।जनता को तुच्छ समझ कर 24 घण्टे 365 दिन खुराफात और झूठ की राजनीति में उलझाने का केजरीवाल कल्ट आखिरकार खुद के जरिये ही धराशायी हुआ है।बेशक प्रधानमंत्री मोदी से लोगों की अपरिमित अपेक्षाएं पूरी नही हुई है लेकिन इस देश की जनता का भरोसा उन पर बना हुआ है तो इसका बुनियादी कारण मोदी का व्यक्तित्व भी है।उन्होंने केजरीवाल की तरह हवाई चप्पल और दिखावे की मफलर राजनीति के साथ भृष्टाचार और निजी सुख सुविधाओं पर जनता को निराश नही किया है जैसा कि केजरीवाल के शीश महल और राज्यसभा के टिकटों की कथित बिकवाली से खुलकर सामने आया।जनता को मोदी से शिकायत हो सकती है लेकिन भव्य बहुसंख्यक चेतना से नया आयाम लेती संसदीय राजनीति में अभी भी जनता के लिए भरोसे का ब्रांड मोदी बने हुए हैं।जनता को भरोसा है कि बंगलादेशी,रोहिंग्या से अभी सरकार नही निपट पाई है तो निपट भी मोदी ही सकते हैं।केजरीवाल, अखिलेश और राहुल नही।इसीलिए महाराष्ट्र, हरियाणा हो या दिल्ली जनता ने मोदी की गारंटी को पसंद किया है।केजरीवाल की यह हार विशुद्ध नकारात्मकता या यूं कहें मोदी से निजी खुन्नस पर खड़े किए गए इंडी गठबंधन का मर्सिया भी है क्योंकि यह मूलतः एक अस्वाभाविक जमात भर है।
दिल्ली की हार देश के मोदी विरोधी और वाम झुकाव वाली पत्रकार, यू ट्यूबर्स पत्रकारिता के मुंह पर भी झन्नाटेदार तमाचा है।यह विपक्ष को समझ लेना चाहिये कि इस जमात की आभासी यानी नकली बकलोली से मनोरंजन तो खूब हो सकता है लेकिन मैदानी राजनीतिक लड़ाई नही लड़ी जा सकती है।
केजरीवाल की यह हार सही मायनों में जनता की जीत भी है क्योंकि आम आदमी और नई राजनीतिक संस्कृति  के आकाशीय वादों पर जनता ने अतिशय भरोसा तीन बार जताया लेकिन केजरीवाल ने इस भरोसे को तुच्छ समझकर खुद की ब्रांडिंग के लिए एकमेव उपयोग ही नही उसका शोषण किया ।इसलिए जनता ने वही सबक सिखा दिया जो बहरूपिये के रूप में आये किसी तानाशाह को सिखाया जाता है।
कुछ रुदाली यह कुतर्क खड़ा कर अभी भी बहुसंख्यक राजनीतिक चेतना को कमतर समझ रहे है कि कांग्रेस और आप मिलकर क्यों नही लड़े? सवाल यह है कि भाजपा बहुसंख्यक मन और उसकी दबा दी गई गौरवशाली चेतना की राजनीति कर रही है तब आपके पास केवल मोदी को रोकने के नाम का राजनीतिक एजेंडा भर ही क्यों?
आप देख ही नही पा रहे हैं कि आपके लाख दुष्प्रचार के बाबजूद कुंभ भव्य हिन्दू चेतना का साक्षी बना है और आपकी राजनीति कुंभ के उपहास पर टिकी है।
बहुसंख्यक हिन्दू चेतना के उभार को आप खारिज करते रहिए,जेल से दंगाइयों को बुलाकर प्रचार करते रहिए।जातिगत विभेद पर लगे रहिये।भव्य हिन्दू चेतना को आपको समझना ही होगा।