आदिवासी किसानों के यहां पर पहली बार स्ट्राबेरी की खेती

झाबुआ जिले में पहली बार आदिवासी किसानों के यहां पर स्ट्राबेरी की खेती शुरू कराई गई है. जिले में अब आदिवासी किसानों के द्वारा परम्परागत खेती को छोड़कर उद्यानिकी की खेती जैसे फल, सब्जी, मसाला एवं पुष्प की खेती कराई जा रही है, इसके साथ ही इस बार स्ट्राबेरी की खेती जिले के 08 कृषकों के यहां पर ग्राम भुराडाबरा, पालेड़ी एवं भंवरपिपलिया विकास खण्ड रामा में कराई जा रही है। दरअसल, स्ट्रॉबेरी की खेती ठंडे प्रदेशों में होती है लेकिन अब आदिवासी अंचल झाबुआ जिले में भी आदिवासी किसान इसकी खेती करने लगे है। रामा विकास खण्ड के अलग-अलग गांव के आठ किसानों के खेतों पर 5 हजार स्ट्रॉबेरी के पौधे पहली बार लगाए गए हैं।
स्ट्रॉबेरी के पौधे सतारा महाराष्ट्र से बुलवाये जाकर कृषकों को वितरित किये गये है। स्ट्रॉबेरी के पौधे जो कि लगभग 45 दिनों के पौधे प्रति पौधा 7 रूपयें की दर से प्राप्त किये गये। ग्राम रोटला के वास्केल फलिया में रहने वाले रमेश परमार ने अपने घर के समीप ही खेतों में 1000 पौधे ड्रिप मल्चिंग की सहायता से लगाए। 8 अक्टूबर को खेतों में पौधों की बुवाई की गई, करीब तीन माह के बाद फलों की पैदावार शुरू हो गई है। रमेश ने बताया कि पहले फलों की दुकानों पर बॉक्स पैकिंग में इन फलों को देखा था, लेकिन अधिक महंगा होने के कारण इसे कभी खाया नहीं था। अब इसी फल को अपने खेतों में लगाने के बाद खाया तो इसके स्वाद और महंगा होने का पता चला है।
वर्तमान में शहर में यह 300 रूपए प्रति किलों के भाव से बिक रहा है। खेतों में अभी शुरूआत हुई है। इसलिए घर के लोगों के साथ ही रिश्तेदारों को पहली फसल खिला रहे है। जल्द ही इसको बाजार में बेचकर मुनाफा भी कमाएगें। स्ट्रॉबेरी के फल हाईवे किनारे और हाट बाजार में बेचेगें रामा क्षेत्र के ग्राम रोटला में रमेश परमार के खेत में 1000 पौधे, भंवरपिपलिया के लक्ष्मण, भुराडाबरा के दीवान, राठौर, गोलाबड़ी के प्रिंस कतीजा, कागलखों के सागर, हत्यादेली के मोहन और पालेड़ी के हरिराम के खेतों में 500 से लेकर 700 पौधे लगाए गए है. इन सभी पौधों में फल आना शुरू हो गए है। शुरूआत में स्ट्रॉबेरी को लोकल हाट बाजार में एवं हाईवे किनारे बेचा जाएगा।