अमृत काल में पत्रकारिता : दिशा और दायित्व
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हिंदी पत्रकारिता दिवस
दिव्य चिंतन (हरीश मिश्र)
30 मई 1826 को स्वर्गीय जुगल किशोर शुक्ला की कलम की स्याही से हिंदी पत्रकारिता का सूर्य " उदन्त मार्तण्ड" उदय हुआ।
आज़ादी के अमृत काल में कलम पर खग्रास सूर्य ग्रहण की छाया आ गई। सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है। ऐसे में सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर नहीं पड़ती है और पृथ्वी पर अंधेरा हो जाता है।
पत्रकारिता के सूर्य और कलम के बीच में काले-पीले ठेकेदार, भू-माफिया, स्कूल, कॉलेज, कोचिंग , अस्पताल संचालक, चमड़ा कुटाई के व्यापारी, आपराधिक पृष्ठ भूमि के लोग, भ्रष्ट , अनैतिक प्रवृत्ति के उद्दंड लोग आ गए हैं। जिसके कारण कलम की स्याही पर सूर्य की किरणें नहीं पड़ रही और कलम पर अंधेरा छा रहा है।
अब समय आ गया है, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, कलम की स्याही से, पत्रकारों के लिए संवैधानिक लक्ष्मण रेखा खींचें। स्वतंत्र पत्रकार सत्य प्रकाशित/प्रसारित करने के लिए, समाज निर्माण, राष्ट्र निर्माण के लिए कार्य करता है। प्रेस की आज़ादी लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है किंतु यदि कलम को स्याही फेंकने और कर्कश आवाज़ को बेलगाम छोड़ दिया जाए तो इससे राष्ट्र हित को गंभीर क्षति पहुंचती है।
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, पत्रकार बनने के लिए निश्चित मापदंड निर्धारित करे । शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य हो। अभी तो कोई भी अशिक्षित, कालनेमी पत्रकार बन जाता है। बस उसकी जेब में 1000/ रुपए होना चाहिए ! भोपाल जाइए ,किसी भी अखबार या चैनल का कार्ड, आईडी लाइए और शुरू हो जाइए। बन गए पत्रकार !
एक प्रसंग कालनेमी का है, वह एक मायावी राक्षस था । उसका उल्लेख रामायण काव्य में आता है। मेघनाद द्वारा छोड़े गए ब्रह्मास्त्र से लक्ष्मण मूर्छित हो गए। वैद्य सुषेण ने इसका उपचार संजीवनी बूटी बताया जो कि हिमालय पर्वत पर उपलब्ध थी । हनुमान जी ने हिमालय के लिए प्रस्थान किया। रावण ने हनुमान को रोकने हेतु मायावी कालनेमी राक्षस को आज्ञा दी। कालनेमी ने माया की रचना की तथा हनुमान को मार्ग में रोक लिया। हनुमान को मायावी कालनेमी का कुटिल उद्देश्य ज्ञात हुआ तो उन्होने उसका वध कर दिया।
कालनेमियों को पता है पत्रकारिता के वर्तमान पेशे में संजीवनी अर्थात् पैसा और रुतबा भी है और काले पीले कामों का सुरक्षा कवच भी।
यदि पत्रकारिता के धर्म पर चलना है, तो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को अधर्म का, अधर्मी कालनेमियों का वध ( प्रतिबंधित ) करना होगा।
पत्रकारों को स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के अंतर का ज्ञान होना चाहिए। असीमित स्वतंत्रता हमेशा घातक होती है। उस पर नियंत्रण हो। नियंत्रण सरकार, प्रशासन, पुलिस का नहीं, बल्कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ-साथ स्व नियंत्रण भी आवश्यक है । पत्रकार को ज्ञान होना चाहिए कि क्या प्रकाशित/प्रसारित कर सकते हैं और क्या नहीं।
पत्रकारों को खबरों का प्रकाशन, प्रसारण, मूल्यांकन, तथ्यों के आधार पर करना चाहिए । खबरों का प्रसारण और इलेक्ट्रॉनिक तरंगे सार्वजनिक संपत्ति हैं । अतः इनका इस्तेमाल सार्वजनिक हित , लोक हित में किया जाना चाहिए।
पत्रकार संघ, पत्रकारों के साथ सिर्फ इसलिए खड़े न हों कि वह पत्रकार है । जबकि उसके साथ तब खड़े हों जब उसकी कलम ने सत्य को उजागर करने के लिए नैतिक साहस के साथ साथ सामाजिक दायित्व का भी निर्वाह किया हो।
संविधान के अनुच्छेद 19 (1) क में प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी, प्रेस के अधिकार का मूल हिस्सा है। प्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान से प्राप्त हुई है, लेकिन अड़ीबाजी की स्वच्छंदता नहीं मिली।
पत्रकारिता में जोखिम अधिक है, तो सम्मान भी। सम्मान प्राप्त करना है तो मां सरस्वती की आराधना कर अपनी कलम की ताकत को पहचानें । खबरों के माध्यम से दूसरों के अधिकारों का, दूसरे का चरित्र हनन न करें । गलत भ्रामक या तोड़ मरोड़ कर खबरों को न प्रकाशित करें, न प्रसारित करें।
प्रेस एक साधना है, साध्य नहीं। पत्रकार होने पर गर्व कीजिए। जोश के साथ अपने मन पर नियंत्रण जरूरी है। किसी दल, संगठन या व्यक्ति के पीछे पड़ना, उसका चरित्र हनन करना बौद्धिक मृत्यु है।
व्यर्थ का दोषारोपण पाप है। किसी की प्रतिष्ठा को धूमिल करना नैतिक कदाचरण है। किसी का विज्ञापन लेख की तरह छापना पाप है। खबर प्रमाणित है तो दृढ़ रहें। स्पष्टवादी रहें। आपका, आपकी कलम का सम्मान होगा और पत्रकारिता को नई दिशा मिलेगी।
लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )