कृषि विज्ञान केन्द्र, लहार भिण्ड द्वारा भिण्ड जिले में ग्राम मगदपुरा में दो दिवसीय प्राकृतिक कृषि पर प्रशिक्षण सम्पन्न हुआ। कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एस.पी. सिंह के निर्देशित में कार्यक्रम कराया गया जिसमें डॉ. एस.पी. सिंह ने बताया कि प्राकृतिक कृषि जैविक कृषि से भिन्न है, क्योकि जैविक कृषि में खादों एवं जैविक कीटनाशको का उपयोग किया जाता है जबकि प्राकृतिक कृषि में प्रकृत प्रदत्त उत्पादों एवं साधनों का उपयोग किया जाता है। इसमें उत्पादन को प्रकृति की शक्ति माना जाता है तथा कृषि कर्षण क्रियाएँ कम से कम की जाती है।
इसी कम में प्राकृतिक खेती के नोडल अधिकारी डॉ. बी.पी.एस. रघुवंशी ने बताया कि इस पद्धति में रासायनिक खाद, गोबर खाद जैविक खाद, केचुआ खाद एवं जहरीले कीटनाशक, रासायनिक खरपतवार नाशक, रासायनिक फफूंदनाशक नही डालना है, केवल एक देशी गाय की सहायता से इस खेती को कर सकते है किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक, खाद, कीट एवं रोगनाशकों में चला जाता है। यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो उसे प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए। उन्होंने प्राकृतिक खेती के उत्पाद जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत के बारे में विस्तार से चर्चा किया। उन्होंने बताया कि बीजामृत से बीजोपचारित करने से बीजों की अंकुरण क्षमता एवं अंकुरण प्रतिशत बढ़ती है, बीजों में एक समान अंकुरण, फंगस एवं वायरस को रोकता है। वहीं जीवामृत गाय के गोवर, गोमूत्र, गुड, बेसन एवं पीपल एवं बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी से बनाते हैं। यह जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में प्रयोग किया जाता है। तो भूमि जीवाणुओं की संख्या तीव्र गति से बढ़ती है एवं भूमि के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में सुधार होता है। इसी क्रम में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक उद्यानिकी डा. कर्णवीर सिंह ने मल्चिंग के बारे में बताया कि इसमें जुताई के स्थान पर फसल के अवशेषों को भूमि पर आच्छादित कर दिया जाता है। इसी कम में वैज्ञानिक डॉ. एन.एस. भदौरिया ने बताया कि ब्रहारवा अग्निस्त्र तथा निमात्र के बारे में बताया। डॉ. रूपेन्द्र कुमार तथा डॉ. सुनील शाक्य ने अपने विषय से सम्बंधित कृषको से चर्चा किया। कार्यक्रम में पूर्व अध्यक्ष खनिज विकास निगम कोकसिंह नरवरिया ने भी चर्चा किया। कृषकों के यहा जीवामृत, बीजामृत आदि उत्पाद को बनाकर बताया।