इतिहास के साधक, अनमोल विरासत - स्वर्गीय पंडित रमाशंकर मिश्रा
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दिव्य चिंतन
परम पूज्य पिताजी, इतिहासकार, लेखक, पत्रकार स्व पं. रमाशंकर मिश्र की पुण्यतिथि पर विशेष -
हरीश मिश्र
आज मेरे परम पूज्य पिताजी, इतिहासकार, लेखक, पत्रकार स्व पं. रमाशंकर मिश्र की पुण्यतिथि है। उनका लेखन अद्वितीय था। वे शैलकला के संरक्षण और इतिहास के पुनर्लेखन के लिए जीवनभर तत्पर रहे। उनके व्यक्तित्व को शब्दों में गढ़ना और किसी एक लेख में सीमित करना लगभग असम्भव है।
शैल चित्रों और विरासत के संरक्षण के लिए वे सदैव तत्पर रहे। सिद्धांत से किसी भी स्थिति में समझौता नहीं किया, लेकिन स्वयं के लिए कोई शर्त नहीं रखी। जैसा भोजन मिला, ग्रहण कर लिया; जैसा वस्त्र मिला, पहन लिया, और जुट गए इतिहास लेखन में।
उन्होंने आर्यों के शैल-कला अन्वेषण के साक्ष्य-सूत्र एकत्रित कर यह सिद्ध किया था कि भारतीय सभ्यता में आदि मानव का जन्म, विकास और आर्य सभ्यता का विस्तार सतपुड़ा, विंध्याचल और अरावली क्षेत्रों में हुआ था। उन्हें आर्य संस्कृति के प्राचीन साक्ष्य, जैसे ओंकार लिपि, स्वास्तिक, वृषभ (नंदी), अश्वमेध अश्व, हाथी, दरियाई घोड़ा, नीलगाय आदि के शैल चित्र रायसेन क्षेत्र में चट्टानों पर मिले। रायसेन जिले के पनगमा में 'चक्रव्यूह' की आकृतियां मिली थीं, जिनकी रचना 'महाभारत युद्ध' से पूर्व की है, जब पांडव इस क्षेत्र में अज्ञातवास में विचरण कर रहे थे।
उन्हें शैलाश्रयों में आर्य सभ्यता के प्रतीक चिह्न मिले थे। चट्टानों पर मिले शैल चित्रों में आर्य प्रतीक चिह्नों की उपस्थिति से यह स्थापित होता है कि यहां आर्य सक्रियता प्रारंभ हुई होगी।
अपने शोध ग्रंथ "भारत-इटली के पाषाण कालीन संदर्भ" में उन्होंने भारत के अलावा इटली की बाल्कोमोनिका घाटी के शैल चित्रों का भी उल्लेख किया था। रायसेन के खरबई क्षेत्र में सूर्य की गति को मापने के लिए अश्विनी कुमारों द्वारा बनाए गए सतकुंडा और महादेव पानी के निकट भी आर्य सभ्यता के साक्ष्य मिले थे।
पिताजी के बारे में और क्या लिखूं ? लेकिन मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि उनका व्यक्तित्व बहुत जीवट था। वे बहुत सरल किन्तु दृढ़ संकल्पबद्ध थे। उनसे मुझे विरासत में कलम मिली।
पिताजी का जीवन मेरे लिए न केवल प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि एक धरोहर भी है, जिसे संजोना मेरा परम कर्तव्य है। उन्होंने जो ज्ञान और कलम की विरासत छोड़ी, वह मेरी धरोहर है।
उनका सरल और संकल्पबद्ध जीवन मुझे हर दिन सिखाता है कि अपने लक्ष्य की ओर अडिग रहना ही सच्ची सफलता है। चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, अपने सिद्धांतों से समझौता न करना और बिना किसी शर्त के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना ही वास्तविक जीवन की उत्कृष्टता है। उनसे आशीर्वाद के रूप में
मिली इस कलम को मैं इसी भावना से आगे बढ़ाने का प्रयास करूंगा।
आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें स्मरण कर, मैं उनके आदर्शों और शिक्षा को नमन करता हूं। उनका योगदान और व्यक्तित्व सदैव मेरे हृदय में जीवित रहेंगे, और मुझे प्रेरित करते रहेंगे। उनकी यह अमूल्य विरासत मेरे जीवन की सबसे बड़ी धरोहर है। पिताजी को शत्-शत् नमन्।