छिंदवाड़ा l गरीब आदिवासी परिवार में जन्मी श्रीमती महेश्वरी उईके ने कभी सोचा भी नहीं था कि वे मजदूरी के अलावा कोई दूसरा काम भी कर सकेंगी और उन्हें अपनी एक अलग पहचान मिलेगी, लेकिन मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर महेश्वरी अब ना केवल जैविक खेती कर रही हैं, बल्कि जैविक खाद बनाकर विक्रय कर लाभ भी प्राप्त कर रहीं हैं। उन्हें अब लोग जैविक दीदी के नाम से पहचानते हैं। समाज में मिली अपनी इस नई पहचान से महेश्वरी बहुत ही खुश हैं और 15-20 हजार रूपए की मासिक आय प्राप्त कर अपने परिवार के भरण-पोषण में भी सहयोग कर रही हैं। इसका पूरा श्रेय महेश्वरी शासन द्वारा संचालित ग्रामीण आजीविका मिशन और छिंदवाडा जिले की टीम को देती हैं।
       वर्तमान में छिंदवाड़ा जिले के जनजातीय विकासखंड तामिया के ग्राम कुर्सीढाना की श्रीमती महेश्वरी उईके बताती हैं कि उनका जन्म एक निर्धन आदिवासी परिवार में हुआ। छिंदवाड़ा जिले के ग्राम कुर्सीढाना निवासी श्री लच्छीराम उईके से इनका विवाह हुआ।  इस परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। परिवार में बहुत उतार-चढ़ाव आए, लेकिन केवल कक्षा पांचवी तक की शिक्षा प्राप्त लगभग 30 वर्षीय महेश्वरी ने जीवन के हर संघर्ष का सामना डटकर किया, हार नहीं मानी और आगे बढ़ती गईं। उनके परिवार में 2 बेटियां, एक बेटा, सास और पति-पत्नी हैं। गरीब पारिवारिक स्थिति और बच्चों की जिम्मेदारी को देखते हुए भविष्य के लिए कुछ भी बचत कर पाएंगे ऐसा सोच पाना भी उनके परिवार के लिए संभव नहीं था। महेश्वरी बताती हैं कि गरीब पारिवारिक स्थिति में स्वयं और परिवार का पालन-पोषण करना एक चुनौती था। पति के पास कोई रोजगार नहीं था, रोजनदारी में मजदूरी करके जैसे-तैसे परिवार का पालन कर रहे थे। कई दिन ऐसे भी आए जब परिवार के सदस्यों को 2 वक्त का पेट भर भोजन भी नहीं मिला, लेकिन राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर सब कुछ बदल गया।
         ग्राम कुर्सीढाना की श्रीमती महेश्वरी उईके बताती हैं कि विकासखंड तामिया के अंतर्गत 54 ग्राम पंचायतों में स्व-सहायता समूह की महिलाएं राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से एन.आर. ई.टी.पी. परियोजना के अंतर्गत रसायनिक खेती से हटकर जैविक खेती करने लगीं। इन 54 ग्राम पंचायतों में हमारी ग्राम पंचायत कुर्सीढाना भी शामिल है। महेश्वरी जय माता स्व-सहायता समूह कुर्सीढाना की सदस्य हैं।  कुर्सीढाना के ग्राम संगठन का नाम जीवन ज्योति ग्राम संगठन है, जिसका संकुल स्तरीय संगठन नारी एकता संकुल स्तरीय संघ देलाखारी है। आजीविका मिशन की मदद से एन.आर.ई.टी.पी. परियोजना के अंतर्गत प्रशिक्षण प्राप्त कर कुर्सीढाना के स्व- सहायता समूहों की 15 दीदीयों ने मिलकर जैविक समूह का गठन किया और अपने घर पर ही जैविक खाद व दवाई तैयार करके जैविक खेती करना प्रारंभ किया। इसी जैविक समूह में से ही सफलतम महिला किसान महेश्वरी दीदी का नाम प्रमुख है। महेश्वरी पहले अपनी 2.5 एकड़ जमीन में रसायनिक खेती से गेंहू, मक्का एवं सब्जी का उत्पादन करती थीं, जिसमें प्रतिवर्ष 20 से 30 हजार रूपए की लागत लगती थी, लेकिन जब से इन्होंने जैविक समूह से जुड़कर जैविक खेती द्वारा जैविक सब्जी का उत्पादन शुरू किया है, इनकी लागत कम हो गई है। स्वयं जैविक खेती करने के साथ ही महेश्वरी जैविक खाद एवं दवाइयां बनाने का कार्य भी कर रही हैं जिससे एक ओर इनकी रसायनों पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आई है, वहीं दूसरी ओर जैविक खाद और जैविक सब्जी के विक्रय से अच्छा मूल्य प्राप्त हो रहा है एवं अतिरिक्त आय का साधन मिल गया है। वे केंचुआ खाद, जीवामृत एवं 5 पत्ती काढ़ा आदि जैविक खाद एवं जैविक दवाईयों का विक्रय अन्य महिला किसानों को करती हैं। मजदूरी का कार्य बंद कर जैविक खाद एवं जैविक दवाईयों का विक्रय करने से उन्हें समाज में नई पहचान मिली है, अब लोग उन्हें जैविक दीदी के नाम से जानते हैं। साथ ही 15 से 20 हजार रूपए की मासिक आय प्राप्त होने से जैविक दीदी महेश्वरी अब अपने परिवार के भरण-पोषण में भी सक्रिय सहयोग कर पाती हैं, जिससे उनके परिवार की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति भी सुदृढ़ हुई है। जैविक दीदी महेश्वरी को सभी ग्रामों में जैविक खेती पर प्रशिक्षण देने के लिए भी बुलाया जाता है।